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________________ अष्टमः सर्गः श्य क्षणवारमां मेरुप्रते पहोंच्यो. त्यां पांडुक वनमां अर्ध चंद्रना आकारवाली शाश्वती ने स्फटिकनी अतिपांडुकंबला नामनी शिला बे. त्यां पूर्वाचल जेम सूर्यने, तेम इंडे मनोहर सिंहासनपर बेसीने प्रजुने खोलामां धा. त्यां वली एक रूपथी इंद्रे छत्र, वे रूपथी चामर, तथा एक रू पथी वज्र धारण कर्यु. एवी रीते जक्तिवंत इंडे पांच रूपो धारीने बी - जाउने स्नात्र माटे आज्ञा करी. पढी एक हजारने आठ माटीनां, सुवर्णनां, रूपनां, मणि अने रत्नोनां, सोना अने रूपानां, तथा मणि सोनानां, तीर्थोदकथी नरेला कलशोथी प्रजुने दरेके छाजिषेक कय. वली ते प्रजुने गोशीर्ष चंदनथी, दीव्य सुगंधिवाली वस्तुथी, पुष्पोथी, फलोथी, तथा पत्रोथी जक्तिथी पूज्या पढी उत्तम जाववालो सौधर्मेंद्र जरा हवीने तेमनी मनोहर स्तुति करवा लाग्यो के, त्रण लोकनां नायक! देवाधिदेव ! जगवन् ! तथा सर्व जनोमां उत्तम ! अजितनाथ प्रभु तमो जय पामो ? वली हे प्रभु श्री युगादीश प्रभु पी पचीस लाख क्रोड पूर्व गया बाद मारां जाग्यथी आपनो जन्म थयो बेवली आपना अवतारथी, मने (मलनारी ) पूजा ने देशनाना श्रवणयी हुं मारा जन्मने पण सफल मानुं हुं. वली हे स्वामी श्राजे या जरतखंड, हुँ यदि देवो, नागकुमारो तथा मनुष्यो पण पवित्र थया. वली आप वरूपी समुद्रमां बुडता प्राणीउने तारनारा बो. वली हे कृपालु खामी ! सुवामां, बेसवामां, चालवामां, ध्यानमां तथा सर्व कार्योंमां आप मारा चित्तमां वसो ? वली हे गुणोना आधारभूत, अनंत, अव्यक्त, तथा जगत्स्वामी एवा बीजा अरिहंत, तमो धर्मोपदेश देवा माटे वर्या बो. वली हे जगवन्! आपनी सेवा, स्तुति तथा ध्याननां पुएयथी जवजवते आपना चरणकमलो मारा मनमां रहेजो ? एवी रीते पंचांग प्रणामपूर्वक प्रजुनी स्तुति करीने ते इंद्र प्रीतिथी तेमने पूर्वनी पेठे लेने वारंवार जोवा लाग्यो. पढी ते पोताने धन्य मानतो थको देवोस हित तुरत हर्षथी जितशत्रु राजाने घेर श्राव्यो, पढी त्यां मातानी निद्राने, तथा प्रजुना प्रतिबिंबने खेंची लेइ, तथा प्रजुने पलंगपर मुकीने ते नंदीश्वर द्वीपे गयो. त्यां सघला देवो श्राव दिवसोसुधि जिननो जन्मोत्सव करीने, प्रभुनुंज ध्यान धरता थकां पोतपोताने स्थानके गया. ३३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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