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________________ २४ शत्रुजय माहात्म्य. जाय; माटे तेमांधी प्रगट महिमावाला केटलाक शिखरोनो किंचित म. हिमा अहीं कहुं ढूं. मुख्य शिखर शत्रुजयतुं तथा सिझक्षेत्रनुं ने, के जेपर चड्याथी यत्नविना मोदमां जश् शकाय . वली मेरु श्रादिक पर्वतो करतां पण आ पर्वत गुणोयें करीने वधारे उत्तम बे, एम हुं मानुं बु, केमके, तेपर चड्याथी माणसो तुरत मोदमां जाय . वली था शत्रुजय पर्वतपर मेरु, सम्मेतशिखर, वैजार, रुचकगिरि तथा अष्टापदादिक सर्व तीर्थोनां अवतारो बे. वली त्रणे नूवनोमां तीर्थाधिराज सरखा था पर्वतने सातिनी छाथी इंसादिक देवो तथा देवी पण सेवे . वली पोताने घेर बेग पण या तीर्थनां स्मरणथी प्राणी यात्रानुं फल मेलवे , एवा तीर्थनां राजा सरखा, तथा सर्वतीर्थमय था शत्रुजय पर्वत प्रते नमस्कार था ? वली क्रोडपूर्व सुधि शुनध्याने करीने शुधबुद्धि प्राणी बीजां तीर्थोमां जे शुज कर्म बांधे , तेज शुज कर्म था तीर्थमां एक मुहुर्तवारमां बांधे . वली जेणे शत्रुजय पर्वतर्नु स्मरण करेलुं बे, तेणे सघलां तीर्थो, पवित्र पर्वो, तप, अने अनेक प्रकारनां दानो, साराधन करेलुं जाणवू. वली हे इंऽ ! त्रणे जगतमां थाना खरखं को उत्तम तीर्थ नथी, केमके, था तीर्थ- केवल नाममात्र सांजलवाथी पण पापोनो क्षय थाय बे. वली था तीर्थनी आसपासनी पचाश योजननी नूमिनो स्पर्श करवाथी पण मोक्ष मले , अने तेनुं था मुख्य शिखर तो स्मरण मात्रथीज हत्या श्रादिकनां पापोनो नाश करे जे; माटे श्रा मनुष्य जन्म पामीने, तथा सशुरु पासेथी ज्ञान पामीने, जेणे था तीर्थनी पूजा करी नथी, तेनुं सघj कार्य निरर्थक बे. वली ज्यांसुधि जे माणसे था शत्रुजय तीर्थनी सेवा करी नथी, त्यांसुधि तेने गर्नावासमांज रहेलो जाणवो, माटे तेने धर्म तो वेगलोज जाणवो. वली वृषनर्नु रुप धरीने श्री आदिनाथ प्रजुनां चरणमा रहेलो धर्म, अहीं आवेला माणसने जावधी सेवे .वली हे मूढ प्राणी!शा माटे तुं "अहीं धर्म , श्रहीं धर्म " एम कहेतो थको जन्या करे ? फक्त एकज वेला था शत्रुजय पर्वत, तुं दर्शन कर ? वली जे माणसे था शत्रुजय पर्वतपर यात्रा करीने रुषजदेव प्रजुने पूज्या नथी, तेने पोतानो सकल जन्म निरर्थकज गुमाव्यो बे. वली कादव सरखा कर्मोथी प्राणीउने निर्मल करवाथी जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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