________________
प्रथमःसर्गः "विमलाGि" कहेवाय बे, एवो पापोने हरनारो था पर्वत कल्याण माटे था ? वली अन्य तीर्थोमां सेंकडो यात्रा करवाथी माणसोने जे पुण्य थाय , ते पुण्य था शत्रुजय पर्वतनी मात्र एक यात्रा करवाथी थाय डे. वली हे इं! था पुंडरिकगिरिने तुं जो? तेनुं नाम लीधाथी, तथा सांजलवाथी स्त्री जरतारनां पापोनो नाश थयो , वली जे माणस हमेशां उत्तम श्रद्धाथी पुंडरिकगिरिनुं ध्यान धरे, ते माणस संसारनां तापने उखेडीने मोक्षपद मेलवे . वली एक पुंडरीकथी ( सफेद कमलथी) पण जगत ज्यारे ताप रहित थाय , त्यारे पुंडरिक गणधर, अने पुंडरिकगिरि, बा बन्नेथी तो अहीतीय सुखनी प्राप्ति थाय, तेमां शुं आश्चर्य ? वली था एकज पुंडरिकगिरिने जे माणस एकाग्र चित्तथी सेवे , तेने परमानंदमय मोदनुं सुख मले बे. वली ज्यारे तलाव, समुज, शेषनाग विगेरे एक दिशाने पण हर्ष करवाने समर्थ नथी, त्यारे श्रा पुंडरिकगिरिनुं एकज शिखर समस्त जगतने हर्ष करनाऊं . वली जे था - डरिकगिरिने (कमलने) श्रीने रहेला बे, ते संसारमा व्रमण करनारा (ज्रमरो) होता नथी, अने जे थाने सेवता नथी, तेउने पापोयें करीने मलीन जाणवा. जे प्राणी त्रिपदी पामीने आ पुंडरिकगिरिनो आश्रय करीने रहेला , ते पाणीथी (जडथी) उत्पन्न थयेला, तथा जमराउथी आश्रित थयेला (हिंसादिरूप) पुंडरिकने (कमलने) इसी कहाडे बे. वली श्रा जगतमा सजव्य, सुकुलमा जन्म, सिझक्षेत्र, समाघि, अने चतुर्विध संघ, ए पांच सकारो फुर्लज तेम पुंडरिक पर्वत, पात्र, प्रथम तीर्थंकर, परमेष्टी श्रने पर्युषण, ए पांच पकारो पण पुर्खन बे; तेम शत्रुजय, शिवपुर, शत्रुजयी नदी, शांतिनाथ प्रनु अने शमता, ए पांच शकारो पण पुर्खन . एकवार पण महान पुरुषोयें ज्यां स्पर्श करेलो होय, ते तीर्थ कहेवाय, पण था तीर्थपर तो अनंता तीर्थंकरो श्रावेला बे, माटे ते महान् तीर्थ कहेवाय . वली हे इंज! श्रहीं अनंत तीर्थकरो श्रने सिको आवेला बे, तेम असंख्याता मुनि पण अहीं श्रावेला बे, माटे ते महान तीर्थ . वली था पर्वतपर जे चराचर जीवो हमेशा रहे , तेउने धन्य !!! वली हे इं! था पर्वतपर श्री जिनेश्वर प्रहुनां दर्शनश्री, मोर, सर्प, तथा सिंहादिक हिंसक प्राणी पण मोके
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org