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________________ प्रथमःसर्गः नां जे. वली हे इं!श्रा त्रणे लोकमां जेटलां पवित्र तीर्थो , ते सघलां था शत्रुजय तीर्थनां दर्शनश्री श्रावी जाय - वली पंदर कर्मनूमीउँमा नाना प्रकारनां तीर्थो बे, पण शत्रुजय समान बीजुं को पण तीर्थ पापोने हरनारं नथी. बीजां कृत्रिम एवां तीर्थोमां, नगरोमां, उद्यानमां, तथा पर्वतोमां जप, तप, नियम, दान अने ध्यानश्री जे पुण्य उत्पन्न थाय , तेथी दशगणुं पुण्य कल्याणिक तीर्थोमां थाय बे, अने जंबु वृक्षमा रहे. लां जिनतीर्थोमां तेथी सोगणुं पुण्य थाय जे. वली शाश्वता एवा धातुकी वृक्षमा तेथी हजारगणुं, तथा पुष्करछीपनां चैत्योमां, रुचकगिरिमां, अने अंजनगिरिमां अनुक्रमे तेथी दशगणुं पुण्य थाय , तथा नंदीश्वरे, कुंडलाजिमा, मानुषोत्तर पर्वतमां, वैनार पर्वतमां, सम्मेत शिखरमां, वैताढ्यमां, मेरुपर्वतमां, रेवताचलमां, श्रने अष्टापदमां अनुक्रमे तेथी कोडग| पुण्य थाय बे; अने शत्रुजय पर्वतनां देखवा मात्रयीज अनंतगणुं पुण्य थाय बे, अने दे इं! था तीर्थनी सेवाथी जे पुण्य थाय , ते तो वचनथी पण कही शकाय तेम नथी. वली पेहेला श्रारामां ते एंसी योजननां विस्तारवालो, बीजा श्रारामां सित्तेर योजननो, त्रीजामां साठ योजननो, चोथामां पचाश योजननो, तथा श्रा पांचमा आरामां बार योजननो , अने हा श्रारामां ते सात हाथनो रदेशे, पण तेनो महिमा घणो थशे. वली था श्रवसर्पिणीमां जेम ते तीर्थनां विस्तारनी अनुक्रमे हानि थाय , तथा उत्सर्पिणीमां तेनी वृद्धि थशे, पण तेना महिमानी हानि कोश पण वखते थशे नहीं. वली श्रीशषजदेव प्रजु ज्यारे था पर्वतपर तप करता हता, ते वखते हे इं! था पर्वतनां मूलनो विस्तार पचास जोजननो, उपरना जागमा दश योजननो, तथा जंचाश्मां पाठ योजननो हतो. एवी रीतनो श्रा पर्वत प्रलयकाले पण नाश पामनारो नथी, अने तेनो श्राश्रय करीने रहेला लोको मोक्ष सु. खने मेलवे . वली था पर्वतनां शत्रुजय, रैवतगिरि, सिक क्षेत्र, सुतीर्थराज, ढंक, कपर्दी, लोहित्य, तालध्वज, कदंबक, बाहुबलि, मरुदेव, स. हस्र, जगीरथ, अष्टोत्तरशतकूट, नागेंज, शतपत्रक, सिराज, सहस्रपत्र, पुण्यराशि, सुरप्रिय, अने कामद, एवी रीतनां एकवीश मुख्य शिखरो . एवीरीतनां प्रत्येक शिखरोनो महिमा कडेवामां तो अनेक वर्षों चाल्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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