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________________ पंचमःसर्गः २११ आश्चर्यकारी ते पर्वतनी शोजा जोत्यारे चक्री तेनुं वर्णन करवा लाग्या के, आ रेवताचलनी आगल मेरु तो बिलकुल आल्हाद करनारो नथी, तेम विंध्याचल तो वंध्यरूप , तेम हिमाचल पण फोकटज बे, केम के, ते श्रा पर्वतनी शोनाने पामता नथी. वली था गिरि लक्ष्मीनो खरेखर क्रीडापर्वत बे केम के, ते महासिकिनुं स्थानक , तथा अहीं रत्नो, रसकुंपीका श्रने कल्पवृक्षो . वली था पर्वत समवसरणनी शोनाने सर्व जगोएथी धारण करे , केम के, तेनुं था मुख्य शिखर मध्यमां रहेला चैत्यवृक्ष सरखं शोने .वली तेनी चारे बाजुए चार छाररूप करणावाला था पर्वतो गढनी श्रेपिउने धारण करे ; वली अहीं हमेशां जातिवैरवाला प्राणी पण पोतानुं वैर तजीने परस्पर मित्रनी पेठे रहे . वली था पर्वतने जोवाथी माझं मन आनंद पामे , थने तेथी हुँ एम धारुं बुं के, ते विशेषे करीने अज्ञानयी मुकाएदुं थयुं . एटलुं कहीने चक्री मौन रहेते थके, शक्तिसिंह मस्तक नमावतो थको, तथा पडलंदाथी गुफाउँने पण गजावतो थको, कहेवा लाग्यो के, हे खामी ! श्री जिनेश्वर प्रजुए शत्रुजय पर्वतर्नु श्रा पांचमुं रेवताचल, शिखर केवलज्ञान आपनाएं कडं . था पर्वतनी जंचा उत्सर्पिणीमां चडती चडती हती, तथा था श्रवसर्पिणीमां घटती घटती , पण प्रायें करीने ते पर्वत शाश्वतो . श्रा श्रारामां तेनां कैलास, उजयंत, रेवत, वर्णपर्वत, गिरनार, तथा नंदन नाम थयां . वली दीव्य औषधिउथी जरेलो था पर्वत कोने अधिक प्रीति नथी उपजावतो ? अहीं अनंता तीर्थंकरो श्राव्या बे, अने श्रावशे; अहीं रसकुंपिकाउँ, दिव्य रत्नो, कल्पवृदो, तथा चित्रावेली ; अने तेथी ते बन्ने जवोमां सुख आपनारो बे. अहीं ऊरणानां पाणीथी सिंचाएलां उद्याननां वृदो श्रा तीर्थनी शिखामणथीज जेमतेम सर्वे शतुमा फले बे. वली श्रहीं श्रीद, सिझगिरि, विद्याधर, अने देवगिरिनामनां चारे पर्वतो चारे बाजुए रह्या थका शोने दे. मोदरूपी सुखने देनारा था पर्वतने, ते सघला पर्वतो उत्तम स्वामिने जेम तेम सेवी रह्या . वली अहींथी पवित्र अहोवाली, तथा प्रजाविक नदी जिन स्नात्र माटेवहे . श्शान दिशामां श्रीद अने सिझगिरि पर्वतनी वच्चे क्रीडा करता ले देवोनां समूहो जेमां एवी उदयंती नामनी प्रख्यात नदी वहे . वली दक्षिण दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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