SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एG शत्रुजय माहात्म्य. पोतानां खामीने ते बाण देखाडतो थको सर्वने कदेवा लाग्यो के, हे राजन्यो ! उतावल करनारा एवा तमोने धिकार !! केम के, तमो खामीनुं हित चिंतवता थका उलटुं श्रहित करवा लाग्या बो. आ जरत क्षेत्रमा प्रथम तीर्थकरनां पुत्र, तथा वैरीरूपी चंप्रते राहुसरखा था नरत चक्री थया . वली मेरूने तोली शकाय, पृथ्वीने उपाडी शकाय, अने लवण समुत्रने पण सुकावी शकाय, तोपण चक्रीने जीती शकाय नहीं. हवे ते इंज सरखो चंड आज्ञावालो चक्री तमारीपासेथी दंड मागे बे, अने सुरासुरोथी मान्य एवी तेनी श्राझा, तमोने मनाववानी तेनी श्छा . वली देवोने विषे सर्वज्ञ जेम जिनेश्वर प्रनु , तेम श्रा पण पोतानी शक्तिथी माणसोमां इंज सरखो चक्री थयेल बे. माटे न्यायी एवा तमोये था वखते तेनो विनय करवो लायक , अने पोताने कालरात्रि सरखी लडाश्नी तो वातज करवी नहीं. वली सूर्यप्रते जेम पतंगीलं तेम चक्रीप्रते वेष करनार था लोकोने पण आपे निवारवा. माटे हवे दंड देवानी वस्तु एकठी करो ? अने ते चक्रीने जइ नमस्कार करो? केम के गर्व ले ते, हृदयने बालतो थको सर्वखनो नाश करे जे. एवी रीतनी मंत्रीनी वाणी सांजलीने तथा ते अदरो जोश्ने, परमेष्टीना स्मरणथी जेम पाप, तेम ते मागधेशनो गुस्सो नरम पड्यो. पडी ते नेट तथा ते बाण लेश्ने मंत्रीनी साथे चक्रीपासे जश् विनती करवा लाग्यो के, हे स्वामि ! चातकने जेम वरसादनुं पाणी, तेम घणा कालथी उत्कंवित थयेला मने बाजे श्रापर्नु दर्शन थयुं, ते अत्यंत श्रेष्ट कार्य थयुं. वली श्राप अमारा खामी थवाथी अमो.आजे सनाथ थया, केमके सू. र्योदयथी कमलोनी संपदा वृद्धि पामे . वली सूर्यसमान को तेजस्वी नथी, पवन समान को गतिवालो नथी, अने मेरूसमान कोइ पर्वत नथी, तेम श्राप समान को पराक्रमी नथी. वली हे स्वामी ! प्रमादनां वशथी में श्रापनी तुरत सेवा करी नहीं, ते श्राप दमा करशो, केमके संत पुरूषो नमनारप्रते प्रीतिवाला होय . वली हवेथी हे नाथ ! हुँ आपनां चरणकमलप्रते ब्रमरसमान डं, तथा जिननी आशिषनी पेठे आपनी आज्ञा हुँ मस्तकपर चडावीश. वली हे स्वामी! आ. पनी श्राज्ञाथी हुँ जक्तिवालो थश्ने, पूर्व दिशानां था मागध ती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy