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________________ श्री जिनाय नमः (श्रीधनेश्वर सूरिकृत) श्रीशजय माहात्म्य गुजराती भाषातर. प्रथमःसर्गः प्रारच्यते उनमो विश्वनाथाय, विश्वस्थितिविधायिने॥ अर्हतेऽव्यक्तरूपाय, युगादीशाय योगिने ॥१॥ अर्थः-जगतना नाथ, तथा जगतनी स्थितिना करनारा, अने अप्रगट बे, रूप जेमनुं एवा, तथा योगी एवा श्री षजदेवजी अरिहंत प्रते नमस्कार था. अर्दचक्रिश्रियःस्वामी, चामीकरसमप्रनः॥ स्तुत्यःसत्कृत्यलानाय, श्रीशांतिः शुनतांतिकृत् ॥३॥ अर्थः-अरिहंत तथा चक्रीनी संपदानां खामी, तथा सोना सरखी कांति वाला, अने स्तुति करवा लायक एवा श्री शांतिनाथ नगवान मोदनां लाजने माटे मंगलनी वृद्धि करनारा थाऊ. देलांदोलितदैत्यारि, जरासिंधप्रतापहृत् ॥ स्मरणीयं स्मरं कुर्वन; श्रीमान्नेमिः पुनातु वः॥३॥ अर्थः-क्रीडाथी हींचोलेल ने श्रीकृष्णने जेणे, तथा जरासिंधनां प्रतापने हरनारा, अने कामदेवने पण संजालवा योग्य करता, एवा श्री नेमिनाथ जगवान तमाकं रक्षण करो ? . यस्यदृष्टिसुधाष्टि दानाददिरदीश्वरः जातस्तापत्रयान्मुक्तः, स श्री पार्थो मुदेऽस्तुवः॥४॥ अर्थः-जेनी दृष्टिरूपी अमृतनी वृष्टिनां दानथी सर्प पण धरणे तथा अतीत, अनागत, अने वर्तमान काल संबंधि पीडाथी मुक्त थयो, एवारते श्री पार्श्वनाथ प्रजु तमारा हर्षने माटे था ? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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