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________________ षष्टःसर्गः २ए का हती; एवी रीते त्रण लाख पूर्व दीदा पालीने प्रजु पोतानो मोदकाल जाणीने श्रष्टापद पर्वत प्रते श्राव्या. त्यां शुद्ध प्रदेशमा प्रजुए दश हजार मुनिउनी साथे अनशन लीधुं. ते वखते उद्यानपालके, कंठ रंधाश् जवाथी अप्रकट शब्दथी ते व्रतांत जरतजीने श्रावीने कह्यो; ते सांजली पुःखित थएला चक्री परिवार विनांज पगे चालीने त्यां जवा लाग्या, पाउल श्रावताउँने दूर मूकता, अश्रुउने करता, कांटा थादिकथी पण पुःख नही गणकारता, स्त्री सहित शोकातुर थया थका ते तुरत अष्टापदपर चड्या. त्यां सर्व इंजिउनां आश्रवोने रोकीने पर्यंकासने बेठेला, प्रजुने जोश चक्रीए अश्रुजलथी नीजातां थकां तेमने नमस्कार कयों. ते वखते श्रासनो चलवाथी सघला इंसोए त्यां श्रावी प्रदक्षिणा देश शोकातुर थश्ने प्रजुने नमस्कार कर्यो. आ श्रवसर्पिणीनां सुखम पुःखम श्रारानां नेव्यासी पखवाडीयां बाकी रह्यां त्यारे, महावदी तेरसने दिवहे, पहेले पहोरे, चंड थनिचित नक्षत्रमा श्रावते बते, पर्यकासनपर रहेला, स्थूल मन, वचन अने कायानां योगथी मुकाएला, सूक्ष्म कायनां योगथी बादर योगने रंधीने, प्रज्जु सूक्ष्म क्रिय नामनां त्रीजा शुक्ल ध्यानपर चड्या. पठी सूक्ष्म कायनां योगपर तथा पनी उबिन्नक्रिय नामनां चोथा शुक्त ध्यानपर चडीने प्रजु मोदे गया. वली ते ध्यानांतरमां रहेला बाहुबलि श्रादिक मुनि पण प्रजुनी पेठेज क्षणवारमा मोक्ष पाम्या. ते वखते नारकीने पण सुख थयु, तथा त्रणे जगतमा उद्योत थयो.अने एवी रीते प्रजुनुं निर्वाण कल्याणक थयु. एवीरीते प्रजुनो मोद जोश, अत्यंत पुःखित थ चक्री मूर्ना खाइपृथ्वीपर पड्या. पड़ी ते श्राक्रंद करवा लाग्या के, त्रणे जगतनां त्राणनूत प्रजु, बाहुबलि श्रादिक जाज, ब्राह्मीसुंदरी बेहेनो; पुंडरीक श्रादिक पुत्रो, तथा श्रेयांस आदिक नतिजा पण कर्मक्षय करीने मोदे गया, अने हुँ हजु जीवितने प्रिय करीने बेठेलो !! एवी रीते थाक्रंद करता चक्रीने जोर शोकथी इंस पण रुदन करवा लाग्या; ते जो बीजा देवो, अने तेमने जोश चक्री पण रुदन करवा लाग्या. अने ते दिवसथी शोकरुपी गांठने दूर करनारो तथा नेत्रनुं शोधन करनारो रुदननो व्यवहार चालु थयो. पनी छे च. क्रीने कयु के, हे चक्री ! तमो त्रण जगतनां खामीनां पुत्र थश्ने, शो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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