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________________ तृतीयः सर्गः नाना प्रकारनां वृक्षोवालुं, तथा सिद्ध श्रने अरिहंत प्रभुनी प्रतिमाने नमस्कार करता, तथा तेनुं स्मरण करता एवा माणसोनां पापोने नाश करना, या सूर्योद्यान बे, तथा अत्यंत सुगंधिनां समूहथी शोजतुं बे पाजेनुं, तथा प्रजावें करीने मनोहर, अने सघला कोढोने नाश करनारो या सूर्यावर्त कुंड बे. एवी रीते श्राचार्य महारज श्री धनेश्वरसूरिए रचेला, महातीर्थ श्री शत्रुंजयना महात्म्यमां महीपालना चरित्रना वर्णननो बीजो सर्ग संपूथयो. श्रीरस्तु . तृतीयः सर्गः प्रारम्यते. राज्यने श्रवसरे दीवेलां बे कमलो जेए एवा युगलांए प्रभुना चरण कमल सरखा जोइने जलरहित कमलो पृथ्वीपर होय बे, एवं जाणीने, आश्चर्य थइ, जेए पाणीथी सींच्या नहीं, एवा प्रथम प्रभुना चरणो सर्वथा प्रकारे जवरूपी महा तापने बेदवा माटे था ? हवे श्री वीर प्रभु ने कड़े ते के, हे इंद्र ! एवी रीतें में तीर्थनो या संदेपथी महिमा कह्यो; हवे या तीर्थनां प्रजावनी विचित्रताने तुं सांजल ? अनंत काल यशे, तो पण या तीर्थ नाश पामशे नहीं; हवे सर्पिणी कालमां तेना संबंधमां जे थयुं बे, तेनी कथा तुं सांजल? या जंबूदीपनां दक्षिण जरतार्थमां गंगा ने सिंधुना मध्य जागमां युगल रहेता हता. ते मां विमल नामनां हाथीपर चडवाथी विमलवाहन नामनो, युग्मी धर्मवालो, अने सुत्रर्ण सरखी कांतिवालो, पेहेलो कुलकर थयो. तेनो पुत्र चक्षुष्मान् तेनो पुत्र यशस्वी, तेनो पुत्र श्रमिचंद्र, तथा तेनो पुत्र प्रसेनजित थयो; तेनो पुत्र मरुदेव, तथा तेनो पुत्र न्यायें करीने उज्ज्वल नानि नामे थयो, तेनी स्त्री मरुदेवी नामेहती, अने ते हमेशां श्रर्जव गुणोथी उज्ज्वल हती. दवे या अवसर्पिणीनां त्रीजाराने बेडे, श्री रूपनदेव प्रजुनो जीव सर्वार्थ सि थी चवीने ते मरुदेवीनी कुद्दिमां श्राव्यो. असाड वद चोथने दवसे, चंद्र उत्तराषाढा नक्षत्रमां आवते बते तेणीए रात्रिने बेडे नीचे प्रमाणे चौद खप्नो जोयां, वृषन, हाथी, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमाला, कलश, ध्वजा, अभि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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