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________________ पंचमः सर्गः १७ बे, एवा श्रा तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? वली जेने ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमाननां देवो पण सेवे बे, एवा श्र तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? एवी तेणे लोकमां रहेनारा भुवनपति, मनुष्यो, तथा देवो जेने नमस्कार करे बे, एवा या तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? वली अनंत, अक्षय, नित्य, तथा अनंत फलने देनारुं श्र तीर्थ जय पामो ? तथा ते प्रते नमस्कार था ? वली जेपर अनंता तीर्थंकरो सिद्ध थया बे, तथा यशे, तथा जे मुक्तिरूपी स्त्रीनुं क्रीडाग्रह बे, एवा श्र तीर्थराजप्रते नमस्कार था ? एवी रीतनी या पुंडरिक गिरिनी स्तुति जे माणस हमेशां जणे ठे; ते मास घेर बेगं पण यात्रानुं उत्तम फल मेलवे बे. एवी रीते चक्रीए श्री शत्रुंजय पर्वतनी स्तुति करीने गणसहित श्रीनाज गणधर महाराजने नमस्कार कर्यो. नमता एवा चक्रीनी पीठपर गणधर महाराजनो हाथ, जाणे कर्मरूपी हाथीने मारवाने मेरुपर सिंह चड्यो होय नहीं, तेम शोजतो हतो. पढी धर्मध्यानमां तत्पर रहीने, तथा गुरुनां वचनरूपी अमृतथी सिंचायां थकां आनंद सहित चक्रीए दिवस व्यतीत कर्यो. पढी प्रजाते चक्री संघसहित चैत्यमां रडेला प्रजुने तथा गुरुने नमीने पुण्यकारी पारणं कर्यु. पठी तेमणे त्यां पुंडरिक गिरिनी समीपमां वार्धकीरत्न मारफते विनिता नगरी सरखुं नगर वसाव्युं. त्यां मोटा मेहेलोनां त्रण क्रोड ऊरखा, जाणे ते पर्वतने जोवा माटे निमेष रहित थएला नेत्रोनां समूहो होय नहीं, तेम शोजता हता. त्यां मेहेलोपर रहेली मणीमय आगासीषी श्रमावास्याने दिवसे पण माणसोने हजारो चंडोनी चांति यती हती. त्यां सोनानां मेहेलोनां शिखरोने जोइ जोइने, लोको मेरुने तो तेनां कचरानां ढगलासरखो मानवा लाग्या. वली त्यां समुद्रोमा जेम पाणीने तेम समस्त देशोनी वस्तुर्जने लोको जोता हता. वली त्यांना मोहोटा गढनी आकाशमां अडती शिखार्ज कृणवारसुधि, चालता एवा सूर्यनां घोडाउने पण विघ्नकारी यती हती. वली निकलती रत्ननी कांति जेमांथी एवां द्वाररुपी मुखोयें करीने, शोजाथी जाणे देवनगरीनी पण हांसी करती होय नहीं, तेम ते नगरी शोजती इती. तेनी अंदर निर्मल कांतिवालुं श्री युगादीशप्रभुनुं मंदिर, जाणे जरतनो अक्षय यशनो कंद उंचो जतो होय नहीं, तेम शोजतुं हतुं; ते कंद व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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