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________________ चतुर्थःसर्गः २४ए उलटो तेमने तर्जना करतो होय नहीं, तेम गंनिर वाणीथी बाहुबखिने कहेवा लाग्यो के, हे काकाजी! आजे तो मंगल बे; वली तमो मने ताततुल्य डो, तेथी हुँ तमोने नक्तिथी नमुंडं. वली पिताजी ज्यारे दिग्जयमाटे गया हता, त्यारे ते मने विनीतामांज बोडी गया हता, तेथी में जरा पण रणसंग्राम जोयो नथी; माटे बाजे कृपा करीने थापनां था पुत्रनी सुजाउनु पराक्रम जु? एम कही तेणे धनुदंडनो टंकार कयों. ते वखते त्रणे लोकनां नाशनी शंकाथी संभ्रांत थएला देवो, आकाशमां एक बीजापर पडता थका टोलांबंध एका थया; अने विचारवा लाग्या के, अहो ! पोतानां बन्ने हाथोसरखा, था बेषनदेव प्रजुनां प्रत्रोनो रणसं ग्राम केवो जयंकर निवडशे! एम विचारि तेठए बन्ने सैन्योनां सुनटोने कडं के, हे सुजटो! ज्यांसुधि अमो तमारा बन्ने खामिउँने समजावीयें, त्यांसुधि तमोए कोए युद्ध करवू नहीं; अने ते माटे तमोने श्री कृषजदेव प्रजुनी “श्राण" . एवी रीते त्रणे जगतनां स्वामिनी आणाथी बन्ने सैन्योनां सुनटो चित्रेलाऊनी पेठे स्थिर थर गया. अने देवो जरत महाराजापासे गया. त्यां जश् तेजेए जरतने कह्यु के, हे उ खंड जरतनां खामी ! तथा हे चक्रीशिरोमणि! तमोए ब खंड पृथ्वीनो जय सुखेची कर्यो; अने तेमां देवोमांधी पण को तमारी सामे थयुं नहीं बने हवे तमो बन्नेए श्रीषनदेव प्रजुनां पुत्रो थश्ने, पोतानां हाथथीज पोतानां हाथनो वध केम थारंज्यो ? तमारा पिताजीएज था जगतनी सृष्टि बनावी, अने तेसृष्टिनो तमो बन्ने संहार करोडो,ते तेमनां पुत्रपणाने लायक ? वली तमोज्यारे सामा चालीने लडवा आव्या बो, त्यारे ते बाहुबलि पण सामा श्रावेल ,माटे तमो चाख्या जवाथी ते पण चाल्या जशे.वलीते तमारा नाना जा जे; माटे कारणे कारज नीपजे . माटे हे राजन् ! जगतने संहार करवानां कारणरूप धारणसंग्रामथी तमो विरमो ? के जेथी श्राप जेवानो उदय त्रण जगतनां हर्षमाटे थाय. एवी रीते कहीने देवो मौन रह्याबाद चक्री तेउने कदेवा लाग्या के हे देवो! तमो हमेशां पिताजीनां नक्तो बो, अने श्रमो पण तेज पिताजीना पुत्रो बीयें; माटे युक्तायुक्तनो विचार करीने, तमो श्रमोने शिखामण श्रापो ? "हुं बलवान बुं" एवा हेतुथी अथवा मात्सर्यथी हुँ कंशं रणसंग्रामनी श्बावालो नथी, पण श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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