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________________ तृतीयः सर्गः पण समतावान प्रजुए पोतानुं राज्य, सैन्य जंडार विगेरे तज्यां दतां, तेथी तेमणे तेमांथी कंं पण लीधुं नहीं. एवी रीते श्राहार रहित एक वर्ष गयाबाद प्रभु राजा ने देवोथी वींटाया थका गजपुर नगर प्रते श्राव्या. त्यां कल्याणनां भंडाररुप बाहुबलिनां पौत्र श्रेयांसे प्रभुने जोइने पोतानां पूर्व जन्मोनी यादगीरी करी. ते वखते जातिस्मरण ज्ञानथी श्रेयांसे प्रजुनो ने पोतानो संबंध जाणीने, अनवद्य आहारनुं दान, "" पात्रो विचार करवा मांड्यो; तेज वखते निर्मल सेलडीनां रसने श्रावेलो जाणीने, तथा प्रभुने पात्ररुप जाणीने, ते आपवानी तेणे श्वा करी, छाने ते प्रजुने कह्युं के, हे स्वामी ! श्रा रस निरवद्य बे, माटे कृपा करीने आप ते ग्रहण करो ? एम कहीने तेणे प्रजुनां हाथमां ते रस रेड्यो. प्रजुनां हाथमा रहेलो घणो एवो पण ते रस शिखाने धारण करवा लाग्यो; 'पण नीचे पड्यो नहीं; केम के जिनने जजनारार्जुनी नीची गति यती नथी. ते वखते जगतने जाणनारा प्रजुए अमृत रस सरखा ते रसने पीने, तपथी तपेली पोतानी साते धातुर्जने शांत करी. एवी रीतें प्रजुनां पारणा समये सुगंधि पाणी, पुष्प श्रने सुवर्णनी वृष्टि, देवकुंडु जि, तथा चेलोनूय एवी रीते पांच दीव्यो प्रगट थयां मांगक क्तिवाला श्रेयांसे, " प्रजुनां पारणानी भूमिने कोइ स्पर्श न करे, तेटला माटे त्यां रत्ननी पीठीका बनावी. वैसाक सुदी त्रीजने दिवसे प्रजुने या दान मल्युं, त्यारथी अखात्री जनुं पर्व आजदन सुधि चाले बे. जेम डुनीयामां प्रभुथी जगतव्यवहार चालु थयो, तेम श्रेयांसश्री सत्पात्र दान चालु थयुं. एवी रीते श्रेयांसनो उद्धार करीने, जगतनो उद्धार करनारा बद्मस्थ प्रभु, कर्मनां नाश माटे पृथ्वी पर विहार करवा लाग्या. अहीं जरत राजा पण धर्मानुशासनथी राज्यने पालवा लाग्या, तथा दिवसे दिवसे पोतानां कुलने दीपावता थका, अद्भूत लक्ष्मीवाला थया. वली ते जरत राजा पितानां चरण कमलनी सेवामां रसिक थया थका, पितानी माता मरुदेवाने हमेशां नमस्कार करता. एवी रीते राज्य पालतां थकां एक हजार वर्षो गया बाद, जक्तिथी हमेशां जेनी उपासना करेली छे, एवी मरुदेवा माताने नमस्कार करवा माटे जरत राजा प्रजातमां गया. हमेशां पोतानां पुत्रनां स्मरणथी करता श्रसुथी श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ՇԱ www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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