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________________ पंचमःसर्गः २५३ शाज्ञाथी त्यां अप्सराए, तथा हाहा हुहु विगेरे गांधर्वोए लोकोने हर्ष थापनारं संगीत कयु. संगीत त्रणे लोकोने वश करनारु, खर्गादिक सुख थापनालं, तथा सर्व लोकोनां सर्व अर्थाने साधनाएं बे; संगीत सुखपु:खमां सर जे; तथा ते साद श्रने शेलडीना रसथी पण अधिक (मिगशवालु), तेम जिन पूजामां ते संगीत पापने हरनारूं जे; वली तेणे सुवर्ण प्रते जाणे सुगंध लाववानी श्वाथीज होय नहीं तेम, ते तीर्थमां विशेषे करीने मुनिउनी त्रिविधं पूजा करी. वलि त्यां तेणे सुवर्ण, रत्न, रूपुं, जल, अन्न तथा वस्त्रोथी, फरीने न आवे एवं याचकोनुं दारिज दूर कयु. वली नरत राजाए ते तीर्थनी पूजा माटे ते सुराष्ट्र देश थापी दीधो; अने त्यारथी ते पृथ्वीमा “देवदेश" तरिके प्रसिद्ध थयो. हले एक दिवसे ते चक्री अने इं एक श्रासनपर बेसीने परस्पर कथा रूपी अमृतरसने पीता हता. तेटलामां मोटा हृदोनां श्रावोरूपी नानिवाली, विकखर कमलरूपी मुखवाली, कांग रूपी जघनथी मनोहर, रसवली, (पाणीवाली) अंदर रहेला वेटोरूपी स्तनोथी मनोहर लागती, हंसोरूपी वस्त्रवाली, लावण्यने धरनारी, वृदोनी घटाथी सूर्यने न जोती, शुजने धारण करनारी, पुण्यनी सोबतवाली, पूर्वाब्धिरूपी पर तिना संगवाली, पोताना तरंगोथी नाचती, चकोररूपी आंखोवाली, खस्थ, तथा उत्तम पर्वतथी (राजाथी) उप्तन्न थएली एवी कुलस्त्री सरखी शत्रुजयी नदीने जरत महाराजे आगल रहेली दीठी. चकोर, चातक, चक्रवाक, हंस, तथा सारसथी शोजीती थएली, मोजांउथी चपल कमलोवाली, जमराउना गायनोवाली, तथा बन्ने शिखरो वच्चे मर्यादानी पेठे रहेली, एवी ते शत्रुजयी नदीने जोश्ने जरत राजाए इंजने पूज्युं के हे इं! श्रा नदी कर ले ? त्यारे इंडे पण कयु के, हे चक्री! था शत्रुजयी नामनी नदी बे, अने ते शत्रुजय पर्वतनां आश्रयथी गंगाथी पण अधिक फल देनारी .श्रा नदीमा रहेला हृदोनुं जो जुडं जुडं माहात्म्य कहेवामां आवे, तो खरेखर बृहस्पतिना पण सेंकडो वर्षों वीती जाय. पूर्वे केवलनाणी नामना तीर्थकरनां स्नात्र माटे अहीं श्शानें गंगाने उतारी हती. ते नदी वैताढ्य पर्वतथी जमीननी अंदरज वहे , तथा था शत्रुजय पासे ते प्रगट थाय डे, श्रने तेथी तेनुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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