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________________ पंचमःसर्गः २६५ था तीर्थमां रायणनां वृदतले समोसर्या , तथा समो सरशे. वली श्रा सुराष्ट्र देश, श्रा शत्रुजय गिरि, थारायण, तेम वर्तमान तीर्थंकर ए सघला तीर्थरूप . वली समुखमा रहेलो जेम वडवानल, तेम था फुःखम कालमां था तीर्थनो महिमा अधिक अधिक थशे, माटे या मोटामां मोटुं तीर्थ . था तीर्थमां श्री अरिहंत प्रजुनी पुष्प, श्रदत विगेरेथी पूजा करवाथी, तथा स्तुति करवाथी प्राणीउनु जन्मसुधि करे पाप नाश पामे . वली अन्य तीर्थ करता था तीर्थमां जिननी पूजा करवाथी अनंतगणुं फल मले बे. तेम थहीं फक्त एकज पुष्पथी अनुपूजा करवाथी वर्ग अने मोक्ष पर्खन थतां नयी. वली या तीर्थमां जे माणस प्रजुनी अष्टप्रकारी पूजा करे , ते नवे निधानो पामीने अरिहंत तुल्य थाय बे. वली पुण्यशाली माणसज अरिहंत प्रनुनी पूजा, सुगुरुनी नक्ति, शत्रुजय तीर्थनी सेवा, तथा चतुर्विध संघनो संगम करे . वली अहीं शुज गुरुनी त्रिकरणशुधिपूर्वक आराधना करवाथी ते तीर्थंकर पद आपे बे, तथा सामान्य मुनिनी श्राराधनाथी चक्रीनी लक्ष्मी मले बे. वली जेणे पोतानां धननां समूहथी गुरुनी सेवा करी नथी, तेनो जन्म, तथा तेनी सर्व सदमी पण निष्फलज . वली पूर्व जवमां तीर्थंकरोने पण बोधिबीजनां हेतुरूप गुरुज , माटे बुद्धिवाने तेवा गुरुनी यहीं विशेष पूजा करवी. वली अहीं सघली धर्मक्रीया पण गुरुनी साथे रहीने करवी; केम के गुरु विना ते सघली निष्फल . माटे पोतानां अनृण्यपणाने श्वनारा माणसे या तीर्थमां धर्म थापनार गुरुनी वस्त्र, अन्न, पाणी श्रादिकथी सेवा करवी. वली था शत्रंजय तीर्थमां गुरुने वस्त्र, अन्न, तथा जलनुं दान देवाथी, तथा तेनी जक्ति करवायी था लोक अने परलोकमां सर्व संपदा मले . या शत्रुजय तथा जिन, ए बन्ने स्थावर तीर्थों बे; पण गुरु तो जंगमतीर्थरूप , माटे तेमनी अहीं अत्यंत सेवा करवी. वलीथा तीर्थमां अजयदान, अनुकंपादान, सुपात्रदान, तथा कीर्त्यादिक मोटर्नु दान, तेम अन्नदान, ज्ञानदान, औषधदान, अते जलनुं दान देवू; एम जिनेश्वरोए कहेलु डे. वली जे माणस अहीं दीन, तथा अनाथादिकोने दान थापे बे; तेने घेर अटकाव रहित निरंतर लक्ष्मी नाच्या करे . माटे महा बुद्धिवाने मोक्ष देनारुं दान था तीर्थमां देवू; केम के, दान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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