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________________ प्रथमःसर्गः वी, श्रने तेउनी पलाडी साधवी बेठी. वली त्यां अनुक्रमे नवनपति, ज्यातिषी, अने व्यंतरनी स्त्री दक्षिण धारथी श्रावीने तथा प्रजुने नमीने नैत्य खुणामां बेठी. वली त्यां ज्योतिषी, जवनपति, अने व्यंतर देवता. उ, पश्चिम हारेधी प्रवेश करीने, तथा प्रजुने नमीने, वायव्य खुणामां बेग. वली त्यां वैमानिक देवो, पुरुषो, तथा स्त्री उत्तर छारथी श्रावीने, तथा प्रजुने नमीने इशान दिशामां बेग. हवे बीजा गढमां हरिण, सिंह, पाडा विगेरे, प्रजुना दर्शननां माहात्म्यथी मत्सरनो त्याग करीने बेग. तथा बेला गढमां देव, असुर अने मनुष्योनां सघलां वाहनो रह्यां, केम के, एवीरीतनो जिनमतनो अनुक्रम ; वली त्यां बीजा सिफ, गंधर्व, किन्नर विगेरे पण यथायोग्य स्थानके, प्रजुनां वचनरूपी अमृतने पीवाने उद्यमवंत थया थका बेग. वली ते एक योजन प्रमाणवाला समवसरणमां पण कोडो गमे मनुष्य, जुवनपति, देव विगेरे माया, ते सघलो प्रनाव प्रजुनो जाणवो. हवे त्यां सिंहासनपर बेठेला, तथा त्रण बत्रोथी शोजता, चामरोथी वीजाता, अने सर्व अतिशयोथी शोजता, सौम्य, कांतिनां समूहथी त्रणे जगतने व्याप्त करता, केवलझानथी लोकोने जोनारा, त्रण लोकनां ऐश्वर्यश्री सुंदर, सघला प्राणीउनु हित करनारा, तथा दीव्य प्रनावथी कीर्तिवंत थयेला एवा ते प्रजुने जोश्ने सघला देवो अवच नीय दर्षने पाम्या. वली ते वखते केटलाको मस्तक धुणाववा लाग्या, केटलाको प्रजुना बुंडणां उतारवा लाग्या, तथा केटलाको प्रजुनी स्तुति करवा लाग्या. एटलामां सुराष्ट्देशनां राजानो पुत्र, यादवकुलवालो, रिपुमक्ष नामे जीर्णदुर्गनो (जुनागढनो) खामी त्यां आव्यो. ते वखते हर्षनां अश्रुथी नरेली , आंखो जेनी, तथा रोमांचरूपी कुंचुकने धारण करनारो, श्रने स्फुरायमान थयेल , नक्ति जेनी एवो सौधर्मे नीचेप्रमाणे प्रजुनी स्तुति करवा लाग्यो. हे सामान्य केवलीनां स्वामी, तथा जगतनां प्रजु, त्रण जगतमा तिलक समान, तथा संसारथी तारनारा तमो जयवंता वों ?वली हे देवाधिदेव, पूजनीक, करुणानां समुज, शरणे थावेला संसारीनुं रक्षण करनार, तथा करुणानी खाण समान तमो जयवंता वर्तो ? वली हे जंगम कल्पवृक्ष सरखा, अरिहंत, परमेश्वर, परमेष्टी, मृ. त्सुरहित, प्रकट, तथा निरंजन एवा तमो जयवंता वर्तो ? वली हे सिझ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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