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शत्रुजय माहात्म्य. खयंबुल, तत्वोनां समुज सरखा, सर्व सुखोना घर सरखा; तथा महेश्वर एवा तमो जयवंता वों.? वली हे प्रनु ! तमो अनादि, अनंत, अव्यक्त, तथा स्वरूपने धारण करनारा बो,अने सुर, असुर तथा राजा तमोनेज नमस्कार करे . वली हे जगतनां स्वामी! आपनायीज हुँ आ ज. गतने धन्य मानुं बुं, तथा अन्य पाखंडिउनां तर्क श्रने कुयुक्तिश्री दोन नहीं पामता एवा तमो प्रते नमस्कार था? वली हे प्रजु ! तमारा पासेथी हुँ मोक्ष सुखनी श्वा रा डं, अने तमारा अतुल्य महिमाने देवो पण जाणी शकता नथी. वली हे देव! तथा सर्व तत्वोनां जाणनार! उत्कृष्ट ज्ञान आपमा रहेj , केम के, मोद हमेशां आपने श्राधिन डे, एम ज्ञानी कहे . वली हे ईश्वर! तमोये जगतनो उद्धार करवा माटें मनुष्यनुं रूप धारण करेलु डे, नहींतर था जगत अजगतज कहेवात. वली सर्व देवोने विषे देवपणुं पण तमारा अंशथीज प्राप्त थयेवू , केमके अन्यदर्शनी पण वीतरागपणानेज मुक्ति कहे बे. वली हे जगतनां पूज्य, निश्चयें करीने तमोज परमेश्वर , केमके, रागडेथे करीने सहितने तत्वथी परमेश्वरपणुं घटी शकतुं नथी. वली जाग्यहीन माणसो
अन्य देवनी पेठे आपने जो शकता नथी, केमके, बीजां रत्नोनी पेठे चिंतामणी रत्न कंई सुलन होतुं नथी. वली हे प्रनु ! तमारेविषे प्रजावनी रिकि जेवी , तेवी अन्य देवोमां नथी, केमके ताराऊमां सूर्यनी प्र. ना क्यांथी होय ? वली हे प्रनु ! ज्यां तमो विहार करो बो, त्यां सो जो. जनसुधि कंई पण उपजव थतो नथी, अहो! मोटाउँनो प्रस्ताव पण मो. टोज होय ! ! वली हे जगवन् , ज्योतिरूप एवा तमोज योगी ने ध्यान धरवा लायक हो, वली आठ कोनो नाश करवामाटे आपे अष्टांगयोग करेलो . वली खामीनां पण स्वामी, गुरुनां पण गुरु, श्रने देवोनां पण देव, एवा तमो प्रते नमस्कार था ? वली जलमां, अग्निमां, वनमां, शत्रुनां संकटमां, तथा सिंह, सर्प अने रोग आदिकनी विपदामां तमोज मारा शरणजूत ; एवी रीते सुधर्मे, प्रजुनी स्तुति करीने, नक्तिपू. र्वक, बपैयो जेम पाणीने, तेम प्रजुनां वचननुं पान करवाने बेठो. पनी त्रणे जगतनां स्वामी एवा ते प्रनु, जगतनां हर्षमाटे सर्व नाषामा समान अर्थवाली, सर्व प्राणीउनु हित करनारी, सर्व अतिशयोथी संपूर्ण, सर्व
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