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________________ ११ तृतीयःसर्गः मने कहेवा लाग्या के, जो तमारे जीवित श्रने राज्यनी पण श्छा होय, तो तुरत जरतनी पासे श्रावी हमेशां तेमनी सेवा करो? एवी रीतनी तेउनी कडवी वाणी सांजलीने, ते राजा मानश्री अष्टापदप्रते रहेला प्रजुपासे गया; त्यां प्रजुने नमीने तथा स्तवीने, आंखोमां किंचित आंसु लावीने पोतानो व्रतांत ते कहेवा लाग्या के हे तात! श्रापे दीक्षा लेती वेलाए श्रमोने अने नरतने पण यथायोग्य, श्रापनी श्यामुजब राज्यो थाप्यां हतां; हवे दावानलनी पेठे परनी उन्नतिने नहीं सहन करीने जरते श्राखा ब खंडनो ग्रास कयों. अने अमो तो आपनी जक्तिमां तत्पर थश्ने श्रमा. रां राज्योथीज संतुष्ट थथा थका, सुखेथी दिवसो गालता हता. पण हवे तो था मोटा नाश् श्रमारां राज्योने पण देवाने श्छे बे, माटे हवे श्रमारे शुं करवू ? ते माटे पूर्वनी पेठेज श्राप अमारां हितनीश्वाथी फरमावो ? ते सांजलीने जगतनां नाथ जगतने पण प्रिय लागे एवं वचन कहेवा लाग्या के, पराक्रमी क्षत्रीए शत्रुजेने मारवाज जोश्य !!! अने तेथी हमेशां बलमा तत्पर अने पासेज रहेता एवा रागद्वेषरूपी महाशत्रुने तमो मारो ? श्रा संसाररूपी समुजमां राग . ते पत्थरनां ढगला सरखो , तथा द्वेष तेसम्यक्त्वरूपी कल्पवृक्षने बालवामां अग्नि सरखो . माटे हे वत्सो! व्रतरूपी राज्य मेलवीने, अति जयंकर तपरूपी हथीयारोथी, ते रागषरूपी शत्रुने हो ? एवी रीते प्रनुपासेथी बोधिबीज पामीने, अत्यंत वैराग्ययुक्त थया थका, मोक्षसुखनी श्वाथी तेए तुरत दीक्षा लीधी. पड़ी ते सघली वात दूतोए जरतने जर कही; त्यारे सूर्य जेम सघलां तेजोने, तथा समुन जेम पाणीनां समूहोने, तेम जरते तेनां सघलां राज्यो लेश्ने खाधीन कर्यां; अने तेऊनां पुत्रोने पोतानी श्राज्ञामां राखीने राज्यो सोप्यां; केम के, राजा पोतानी श्राझा मनाववानेज श्छे .हवे सूर्यनां दर्शन सरखो, वरसादनी धारासरखो, पवननी गतिनी पेठे सर्वव्यापी, तथा पर्वतसरखो वजनदार जरतनो प्रताप शत्रुथी सहन न करातो हवो. पोतानां हाथथी दीधेलां दानोथी याचकोनी दरिखताने, तथा धर्मरूपी सूर्यथी अज्ञानरूपी अंधकारना समूहने, श्रने चक्रथी शत्रुनां कुलने हपता एवा श्री नरत महाराजा जयवंता वर्तो ? ते चक्रीश्वरे सकल जगतमां धर्मने एवो तो फेलाव्यो के जेना ध्वनिथी सर्व पापो तथा (अंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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