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________________ १७६ शत्रुजय माहात्म्य. गमे साधुउथी, नमि विन मिथी, ज्ञानी गणधरोथी, शील रुपी अलंकारोवाली साधवीउथी, गायन करनारा गांधर्वोथी, बंदिउँनां समूहोथी, कोतुकी नटोथी, तथा नाचती नायिकाउँथी वीटाएला, एवा जरत महाराज चालवा लाग्या. त्यां सोनानां रथपर रहेऱ्या मणिनुं देवायलय, श्राकाशमां जिनेश्वर प्रजुनां शरीरथी नामंडलनी पेठे शोजतुं हतुं. तेनापर चामरोनां वीजावा सहित त्रणे लोकनां ऐश्वर्यने सूचवनाएं पूर्णिमानां चंड सरखं त्रत्रय शोजतुंहतुं. सैन्यनां चालवाथी उडती रजोए करीने सूर्यमंडलने बालादित करता,तथा संघनां चरणन्यासथी पृथ्वीतलने पवित्र करता, अंतःपुरनी स्त्रीउथीधवलध्वनियें करीने गवाता, मोटी स्त्रीउथी लवण उताराता,जगोए जगोए अने नगरेनगरे गुरुनी पूजा करता, तथा जिनचैत्योनो उझार करता थका जरत राजा प्रयाण करवा लाग्या. पोते वावेला वृदोप्रतेथी जेम, तेम देशो देशनां राजा पासेथी रत्नो अने सुवर्णनी अमूल्य नेटोने लेता थका, योजनप्रमाण प्रयाणथी विविध देशोने उलंगीने श्रनुक्रमे जरत राजा सौराष्ट्र देशमां पहोंच्या. ते वखते सुराष्ट्रनो पुत्र, तथा जरतजीनो नत्रीजो, अने सौराष्ट्र देशनो राजा शक्तिसिंह तेमनी स. न्मुख श्राव्यो. पृथ्वीतलपर पडीने नमता एवा तेने चक्रीए पोताने हाथे उगडीने तथा आलिंगन करीने कर्वा के, हे पुत्र ! था देशनुं सुराष्ट्र नाम सफल थयु के केम के,यहीं परदेशीउने कुष्प्राप्य एवं शत्रुजय तीर्थ बे. वली हे पुत्र! तुं धन्य , के श्रा तीर्थनी हन्नेशां सेवा करे . दूर रहेनारा श्रमो तो थहीं रहीने तेने जो शकता नथी. एवी रीते प्रीति पूर्वक तेने बोलावीने, श्राजूषण आदिकथी तेनुं चक्रिए सन्मान कयु. पली शिखरोथी स्पर्श करेल आकाशने जेणे, तथा यात्रिकोनां यशनां जंडार सरखा, तथा संसारथी नयनीत थएला प्राणी प्रते किदा सरखा, तथा पृथ्वीरूपी स्त्रीनां अमुख्य मुकुट सरखा, तथा मोक्षरूपी स्त्रीने रमवानां दडासरखा, तथा रलोनी कांतिथी यत्न विनां श्राकाशने चित्रित करता, एवा ते पुंडरिक गिरिने जोश्ने रोमांचने धारण करता थका तथा आदरथी मस्तकने धुणावता थका जरत महाराजा सोमयशाने कहेवा लाग्या के, था सौराष्ट्र देशनां पुण्यशाली लोकोने धन्य , के जेजे हमेशां नजदीक रहीने या पुंडरिक गिरिने सेवे . आ पर्वतनी बाया, तथा वायु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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