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प्रथमःसर्गः के कालज्वर तथा फेर श्रादिक तेनां शरीरने पराजव करी शकतां नथी. पसी पोतानी मेले जखरीने पडेला थारायणनां डालां, तथा पांदडांदिक ले. इने, तेने जीवनी पेठे साचवां, केम के, ते सर्व उःखोने नाश करनारां के वली जे बे मित्रो था रायणने साक्षीरूप करीने पोतानी मित्राश्बांधे , ते राज्यादिक सुखोने मेलवीने मोद पदमां जाय . था रायणनां पश्चिम दिशानां नागमा पुर्खन एवी रसकुंपिका ने, के जेनां रसनां गंधथी सोढुं क्रोड सोनामोहोर जेटलुं थाय जे. वली पूजा, नमस्कार अने नाबने जजनारो कोश्क माणस अमनो तप करीने आ रायणनां प्रसादथी ते रसकुंपिकानां रसने मेलवे . वली कल्पवृदो, दिव्य औषधीठ, बने श्राप सिधिनी शी जरूर बे ? फक्त एक था रायणज माणसप्रते प्रसन्न था ? वली था रायणनी नीचे, जग तनां लोकोथी पूजायेलां, तया महासिकि अने सुखने देनासं श्री षनदेव नगवाननां पगलां . पसी तेनी डाबी अने जमणी बाजुये रुषजदेव प्रजुनां पेहेला गणधर श्रीपुंडरिकखामीनी बन्ने नवोमां सुख करनारी मूर्ति जे. वली श्रीमरुदेवानां शिखरपर क्रोडो देवोथी सेवनीक एवा श्रीशांतिनाथ प्रजु संघनी शांतिनेमाटे था ? करेलुं बे, मंगल जेऊये एवा माणसोज श्री श्रादिनापप्रनुप्रते, पुंडरिक गणधरप्रते, रायणप्रते, पगलां प्रते, तथा शांतिनाय प्रनु प्रते, सूरिमंत्रथी मंत्रेला, तथा शुद्ध पाणी, सुगंध, अने पुष्पोथी जरेला, एकसोने आठ कुंनोथी स्नात्र करे . वली ते स्थानकोनी सवंदा सेवा करवायी राज्य, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, सर्वन वशपणुं, धननी प्राप्ति, स्त्री, पुत्र, संपत्ति, सौजाग्यपणुं, जय, सर्व इडित, आनंद, दोषनो माश, तथा उत्तम नोगोनी प्राप्ति थाय बे. वली अहिं अष्टोत्तरीस्नात्रश्रा करवाथी शाकिनी, नूत, वेताल, तथा व्यंतर आदिकनां दोषोथी ग्रव थएला प्राणीउँनां ते दोषोनो नाश थाय बे. वली अहीं स्नात्रपूजा क(वाथी ज्येष्टा, अश्लेषा, मघा, मूल, नरणी अने चित्रा श्रादिक नक्षत्रो
थयेल , जन्म जेनां, एवा माणसोनो विकार पण दूर जाय . व
था तीर्थ निर्मल, मोक्ष लक्ष्मीनो संग करावनालं, नूमिरुपी स्त्रीनांकप्रसमां तिलक समान, तथा षनप्रजुरुपी उत्तम रत्ने करीने शोनित थ. सुं. वली श्रा तीर्थ, अनंत मुक्तिनां घाम सर, हमेशां स्थिर, निर्म
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