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________________ प्रथमःसर्गः पंथी उत्तम , अने वीजा तीर्थोमां जे भ्रमण करवू, ते तो क्वेशनुं कारण . वली था शत्रुजय तीर्थनी यात्रा करवाने श्छता एवा माणसोनां कोडो जवोमां उपार्जन करेलां पापो पण पगले पगले नाश पामे . वली था शत्रुजय पर्वत प्रते एक एक पगले पण, क्रोडो नवोमां करेला पापोथी प्राणी मुकाय . वली शत्रुजय तीर्थनो स्पर्श करनाराउँने रोग, संताप, पुःख, वियोग, उर्गति, के शोक थतां नथी. वली मोक्षने श्वनार एवा सुबुद्धि माणसे, श्रा तीर्थनां पाषाण दवा नहीं, था तीर्थनी नूमि खोदवी नहीं, तेम अहीं विष्टा के मूत्र करवां नहीं. वली था पवतज तीर्थरूप , माटे तेनां दर्शन, अने स्पर्शथी ते मुक्तिसुखने देनारो बे, तेथी ते कोनाथी सेवातो नथी ? (सर्वथी सेवाय बे.) वली श्रा उत्तम पर्वत श्री षनदेव प्रजुथी विशेषे करीने नूषित थएलो , तथा ते, तप जेम कुकर्मोने, तेम निबिड पापोने नाश करे . वली जो श्राकरो तप तपाणो होय, तथा उत्तम सुपात्रे दान देवायुं होय, श्रने जो जिनेश्वर प्रजु प्रसन्न थया होय, तोज था तीर्थनी सेवानो अवसर मली शके . वली आ पृथ्वीतलपर रहेला बीजा सर्व तीर्थोनुं माहा. म्य ऊंचे प्रकारे वचनोथी कही शकाय . पण या तीर्थाधिराजनुं महात्म्य तो केवली पण जाणतां बतां कही शके तेम नथी. वली था तीर्थपर रहेखा श्री शषनदेव प्रजुनां चरण कमलनी सेवाथी समग्र प्राणी निष्पापी थया थका जगतने वंदनीक तथा पूजनीक थाय . व. ली जे प्राणी शीतल अने सुगंधी पाणीथी श्री रुपनदेव प्रजुनुं स्नात्र करे बे, ते प्राणी शुज कर्मोयें करीने निर्मल थाय . वली जे था त्रण जगतनां ईश्वरचं पंचामृतथी स्नान करे बे, ते केवलज्ञान पामीने मोक्ष मेलवे . आ जगतमा श्रेष्ट, तथा नाश करेल , अंतरंग शत्रुट जेणे एवा जे माणसो, कस्तुरी, अगर, कुंकुम, तथा चंदनथी श्रा तीर्थमां तीर्थंकर महाराजनी पूजा करे , ते अखंड लक्ष्मीना सहायवाला थया थका कीर्तिनां विस्तारने नजनारा थाय जे. वली हे इं! जे माणसो था तीर्थमां जिनेश्वर प्रजुनी पूजा करे जे, ते आ जगतमा कीर्तिवंत थया थका था लोक अने परलोकमां पण पापरहित थाय बे. बसी जे माणसो आदर पूर्वक जिनेश्वर जगवानने था तीर्थमां सुगंधि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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