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सप्तमःसर्गः
२४५ श्री वीरप्रजु इंसने कहे जे के, हे इंछ ! एवी रीते था श्रवसर्पिणीमां श्रा शत्रुजय तीर्थनो प्रथम उझार श्रीजरत चक्रीश्वरे को; हवे ते पड़ी बाकीना उझारोनी स्थिति तुं सांजल ?
श्री नरतमहाराजाना वंशमां अयोध्या नगरीमां, तेज अने यशनो खामी श्राठमो दंडवीर्य नामनो राजा थयो. ते त्रण खंड जरतनो अधिपति थयो थको तथा नरत महाराजनी पेठेज श्रावकोर्नु पूजन करतो थको राज्य पालतो हतो. एक दहाडो ते प्रगट नक्तिवंत एवा शोल हजार राजार्ड सहित उत्तम आसनपर बेठेलो हतो. जरत महाराज पठी न कोड पूर्व गया बाद एक दिवसे इंड सनामां बेठो थको प्रजुना गुणोनुं स्मरण करवा लाग्यो. पड़ी ते तेमनी सेंकडो शाखावाला वंशनी स्तुति करवा लाग्यो; आवटे तेणे पोतानां ज्ञानचकुश्री, स्फुरायमान यशवाला, पोताना वीर्यथी चंद्र अने सूर्यना तेजने पण हरता, हजार आंखोवालानी पेठे पोताना चकुथी अनेकोने जोता, हजार हाथवालानी पेठे दिशाउँमांथी सघली लक्ष्मीने खेंचता, हजार जीनवालानी पेठे सर्वने पोता. नां कार्योमा जोडता, पोतानां मस्तकपर श्री युगादीश प्रजुना मुकुटने धारण करता, सर्व बाजूषणोनां तेजोश्री जासुर थएला, मूर्तिश्रीज महा पराक्रमी, न्याय अने धर्ममां तत्पर, युगादीश प्रजु प्रते दृढ नक्तिवाला, जगतने पालवामां शक्तिवंत, घणा राजाश्री सेवाता, चामरोथी वीजाता, धर्मनुं माहात्म्य गृहण करता, तथा सनामां सुवर्णना सिंहासनपर बेठेला दंडवीर्य राजाने जोया. त्यारे खुशीथी पोतार्नु मस्तक धुणावीते, प्रजुना वंशमां नक्तिवालो ते इंअ श्रावकनो वेष लेइने अयोध्यामां श्राव्यो. देवपुष्य सरखी त्रेवडा सूत्रनी यज्ञोपवीतथी हृदयमां नूषित थएला, एक वस्त्रवाला ब्रह्मव्रतथी पवित्र थयेला, बार ब्रतधारी होवाथी बार तिलकोने धारण करता, तथा जरा पीली चोटटलीमात्र केशवाला, जरतजीए बनावेला अर्हत, मुनि, तथा श्रावक धमरूप, दूषण रहित चार वेदने गृहण करनारा, तथा पताका सरखा हाथथी शुद्ध जलें करी आचमन लेता एवा ते (अरूप) श्रावकने जो दंडवीर्य राजा तेमनापर आदरयुक्त मनवालो थयो. पती राजाए तेने जोजन कराववा माटे रसोइयाउने हुकम कर्यो, त्यारे ते पण या
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