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चतुर्थःसर्गः
२३५ पता, तथा लदमीथी कुबेर सरखा लोकोने जोया. वली सर्व जगोए प. वतनां शिखरो सरखा धान्यनां ढगलाउने तथा फलप वृक्षोने जोतो थको ते मनमां चमत्कार पामतो पामतोजवा लाग्यो. एवी रीते अनुक्रमे वेगथी त्रण लाख गामोने उलंगीने, ते बाहुबलीनी राजधानी तक्षशिला . नगरीप्रते पहोंच्यो. त्यां तेणे उंचां अरिहंत प्रजुनां मंदिरोपर रहेली धजाऊनी पंक्तिथी वींकाती, तथा मोतीनां ढगलाउँथी जाणे पसीनावाली, तथा कुबेर सरखा सामंत लोकोवाली, अने लीलाथी मनोहर, तथा अदय संपदावाली, इंजपुरी सरखी ते नगरीने जोश. त्यां तेनी थांखोने वर्ष थापता, अने कवायत खेलवाथी खिन्न थएला क्षत्रीउने दणवार जोश्ने तेना मनमां जय थयो. पड़ी पुकानोनी श्रेणिपर रहेला, तथा पोताने “ अहमिंग" मानता शाहुकारोनां पुत्रोने जोतो थको अनुक्रमे ते राजानां राजदरबारमां आव्यो. पड़ी महेनत विना रत्नोनां किरणोनां समूहोथी आकाशने चित्रित करता, तथा, कृत्रिम अने श्रकृत्रिम सिंहो, अने दीपडाउँथी बीता ने हाथी ज्यां एवा, तथा हाथमां खुलां हथीयारोनां समूहवाला, अने बीजानी बाया जोवाथी पण सावधान रहेता द्वारपालोथी थाश्रित कराएला, तथा को जगोए खरती कस्तुरीथी नरेला, अने को जगोए शत्रुनां हृदयनी पेठे घोडानी खरीउथी खोदाएला, तथा मंडपोथी देवलोकनी पेठे मंडित थएला, एवा अति सुंदर राजमेहेल प्रते ते पहोंच्यो. त्यां क्षणवार सुधि द्वारपालोथी रोकी रखाएलो, श्रने पड़ी बडीदारे राजानी ज्ञाथी प्रवेश क. राएलो ते सुवेग बहु जयसहित राजसनामां दाखल थयो. त्यां तेणे शिखरोथी जेम मेरु, तेम बाहुबलि सरखाज खरूपवाला मुकुटबंध हजार राजाथी सेवाएला, किरणोथी जेम सूर्य, तेम उत्तम शृंगार वाला, अने मूर्तिवंत उत्साह सरखा कुमारोथी अधिष्ठित थएला, वली रत्नोनी जीत अने मणिनां स्तंजोमां पडतां प्रतिबिंबोनां मिशथी अमात्योए करीने अनेक मूर्तिवाला, मुखरूपी सोनेरी कमलनी शंकाथी श्रावेला हंससरखा चामरोए करीने, देवांगनोउथी जेम इंड, तेम वारांगनाउथी वीजाता, पवित्र वेषवाला, तथा सुवर्णदंडने धरनारा बडीदारथी नामग्रहणपूर्वक वर्णन करातुं ने नमता राजाउँनुं जेनी पासे एवा, तथा
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