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शत्रुजय माहात्म्य. शरणुं देवा लायक बगे. वली श्राप, पोतानी मेलेज अमोने तारवामां ततर थया बो, माटे हवे श्रापनी हुँ केटलीक याचना करूं ? एवी रीते प्रजुनी स्तुति करीने, जरत राजा, इंजने अगाडी करीने प्रजुनी पासे बेग, पड़ी तत्वने जाणनारा प्रनु पण एक योजनसुधि गमन करती, सर्व जापानां खरूपवाली, अने गंजीर वाणीथी क्वेशने नाश करनारी देशना देवा लाग्या. (धर्ममां प्रीति करवी, अने पापोथी यत्नपूर्वक विरक्त थर्गा; एवी रीतनो जेमां माणसो प्रते उपदेश होय, ते देशना कहेवाय बे.)
जिनपूजा, सुगुरुनी सेवा, खाध्याय, निर्मल तप, दान, श्रने दया, एवी रीतनां उ कार्यो, हमेशां उत्तम गृहस्थीउने करवानां . वली माता पिता, ममत्व रहित गुरु, धर्मशास्त्र नणावनार, अजयदान देनार, अन्नपाणी देनार, तथा कला शिखवनार, एटलानां चरण कमलोनी से. वाथी पुण्य उपार्जन करवू. वली प्राणी प्रते दया, शुज पात्र प्रते दान, गरीबोनो उकार करवानी बुद्धि, अने यथोचित सर्व जनोप्रते उपकार, एवी रीतनो धर्म संसारथी तारनारो . वली झान, अजय, औषध, स्थान अने वस्त्रनुं दान, अरिहंत प्रनुनी पूजा, समतावंत मुनि ने नमः स्कार पोतानीज स्त्रीमां तृप्ति, तथा अन्य स्त्रीउथी विरक्तपणुं, ए सघलां पुरुषोने अक्षय मंडनरूप बे. वली चाडी, द्वेष, परधननी चोरी, जीवहिंसा, निंदा, रात्रिनोजन, तथा कन्यादिक मोटां जूठ, एटलांवाना वजवां, केम के, तेना सरखं बीजुं पाप नथी. वली पाप, तथा मरकी श्रादिकने हरनारांत्रण रत्नोने ग्रहण करवां; केम के, तेथी शुरू नावयुक्त थया थका संत पुरुषो त्रण नवोमांज सुखेथी मुक्ति सुख पामे . एवी रीते, मनोहर मोक्षरूपी फलने उत्पन्न करनारां, वचनरूपी पाणीने, जविकरूपी पृथ्वीमां वरसीने, प्रजुए उत्कृष्ट संपदा माटे त्रण रत्नरूपी (झान, दर्शन अने चारित्ररूपी) बीज त्यां वाव्यु. एवी रीतनी प्रजुनी पवित्र देशनाने श्रवणगोचर करीने, नरतनो पुत्र झषनसेन प्रजुने विनति करवा लाग्यो के, हे स्वामि ! आ जवरूपी अरण्यमां दिङ्मूढ चि. त्तथी जटकतां थकां अकस्मात सार्थपतिनी पेठे, पुण्योथी मने आपनो आजे मेलाप थयो ; अने तेथी थाप मने तारो ? जे राज्यमा आ राग आदिक शत्रु मारा पुण्यरूपी नंडारने लुंटी जाय , ते राज्यनुं विष
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