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________________ . तृतीयःसर्गः स्कार कर्यो; तथा माताने अवस्खापिनी निता देश्ने, तथा तेमनी आझा लेश्ने, श्रने प्रजुनुं प्रतिबिंब त्यां रहेवा देश्ने तेणे प्रजुने पोताना हाथथी सीधा. त्यां इंजे अंतरमा नक्तिनाव लावीने पोतानां पांच रुपो कयां; एक रूपथी प्रजुने लीघा, एक रूपथी बत्र धर्यु, एक रूपथी वज़ लीधुं, तथा बे रूपथी चामर लीधां. पठी ते सघला देवो, विमानोथी बाकाशने चि. तरता, तथा रत्नोथी चंजनी कांतिने उल्लेखता, अने शब्दोथी जगतने पण फोडता थका मेरुपर्वत तरफ चालवा लाग्या. त्यां पांडुक नामनां उयानमां अर्धचंड सरखा आकारवाली अतिपांडुकंबला नामनी शिलाप्रते इंड पहोंच्यो. त्यां सोए थालियोगिक देवोनी मारफते रूपानां अने रत्ननां, सोनानां श्रने रत्ननां, सोनानां, रूपानां, अने माटीनां कलशो बनाव्या. पनी अनत कांतिवालो ते २७ डिव्य सिंहासनपर पूर्व सन्मुख प्रजुने खोलामा लेश्ने बेगे. पनी समुन, नदी, कुंड, तलाव तथा अहोमांथी पाणी लावीने इंजोये प्रजुनो स्नात्रमहोत्सव कर्यो; पड़ी तेउये मनोहर बरास, लेपन, पुष्प, फल, अक्षत, वस्त्र, आजरण विगेरेथी प्रजुनी पूजा करी. पली निर्मल नाववाला ते इंजोये हर्षथी प्रजुनी भारती उ. तारीने, नीचे प्रमाणे स्तुति करवा मांडी. हे स्वामी! हे युगादीश! हे जगतनां गुरु! हे अर्हन् ! हे ध्यान धरवा लायक! हे निरंजन! तमो जय पामो? वली श्रढार कोडा कोडी सागरोपम सुधि नाश पामेलो धर्म जेठनो, एवा प्राणीउनो उकार करनारा, तथा अज्ञानरूपी अंधकारनां समूहनो नाश करवामां सूर्य समान एवा हे प्रजु ! तमो जयवंता वर्तो ? वली हे कल्याणरूप व्यवहारनां करनारा! तथा सर्व सुखनां स्थानक सरखा तमो जयवंता वर्तो ? वली हे स्वामी! आजे जे तमारं मने दर्शन थयु, तेथी हुँ सघला पुण्यशालीउमा विशेष पुण्यशाली बु. वली वृद, पत्थर, पर्वत तथा पृथ्वी आदिकने धरी राखवाने तो कोश्क पण समर्थ थक्ष शके, पण हे नाथ! या नवरूपी समुद्रमां पडता प्राणीनां समूहने तो तमोज उद्धार करनारा बो. वली राग थादिक शत्रुथी पीडाएला लोकोने तमो निर्णय करनारा , वली मुक्तिरूपी स्त्री मेलववामां दूत समान एवा हे धर्मनां राजा! तमो जयवंता वर्तो? वली बाह्य अने अंतरंग शत्रुनां समूहोथी पीडाता प्राणीउनो जीवद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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