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________________ चतुर्थः सर्गः १२३ जर नामनो मुख्य मंत्री जरतने नमीने, हाथ जोडी, विनयथी वामन यो को कवा लाग्यो के, हे स्वामी ! विस्तार पामता आपना प्रतापटकाववाने समर्थ त्रणे लोकमां कोइ देव के पुरुष नथी; वली मोटा मोटा घंटी सरखा पत्थरोनी गणना कराय, पण पर्वतनी खीषोमां रहेला कांकराने ते कोण गणे ? तो पण कोइक वीरपणांनुं डोल घालतो पृथ्वीपर रहेलो लागे बे, के जे डुर्नयी घरमां शूरो थने श्रापनी आज्ञा मानतो नयी. दवे मालुम पड्युं ! ! ! हे स्वामी ! जिताएला राजाdai आपनो जाइ बाहुबलि के जे, बलवान ने गर्वथी पर्वत सरखो बे, ते दजु बाकी रहेल बे. बाहुबलिना हाथनां बलने रणसंग्राममां इंद्र पण सहन करवाने समर्थ नयी, ते पण हवे अपनी पासे निर्बल यशे; केम के इंद्रनां वज्र सरखा श्रापना दोर्दंडनां घातथी पर्वतनी पेठे सघला राजानं चूर्णपणाने पामे बे. वली थापे या दिग्जयनां मिशथी केवल दिग्निरीक्षण कर्तुं बे, हवे था बाहुबलिने जीतवाथी तमारुं चक्रीपणुं सफल थशे. वली हे स्वामी ! " या मारो जाइ बे" एम विचारि श्रपे तेनी उपेक्षा करवी नहीं, केम के, शरीरनो रोग पण शुं मूलमांथी न उ खेडवो ? वली आज्ञा के मूल जेनुं एवं राज्य पंडितोए कहेलुं बे, केम के पोतानुं पेट जरनारा तो बीजा घणा होय बे, तेमां यश शानो ? ते सां "" लीने स्नेह ने कोपने वश थएला चक्री जरा विचार करीने श्रादरसहित मंत्री ने कड़ेवा लाग्या के, एक बाजुथी " मारो आ जाइ बे तेथी मारुं मन शंका पामे बे, छाने बीजी बाजुथी ते मारी खाज्ञा मानतो नथी, तेथी क्रोधबुद्धि आवे बे. वली पोतानां जाइ साथे युद्ध करवामां मारा मनने लगा वे बे, छाने शत्रुने नहीं जीतवाधी चक्र शांत तुं . वली जेनी श्राज्ञा घरमां पण पलाती नथी, तेनी श्राज्ञा बहार पलाती केम कद्देवाय ? छाने नाना जाइनी साथे युद्ध करवायी लोकापवादनो पण जय रहे बे. ते सांजली अवसर उलखनारो, तथा राजानां श्रभिप्रायने जा नारो ते मंत्री कड़ेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! आपनो नानो जाइ थापनुं संकट दूर करशेज; केम के गृहस्थीउनो एवो सामान्य श्राचार बे के, मोटो जाइ श्राज्ञा थापे, अने नानो जाइ ते मस्तकपर धारण करे; माटे प्रथम दूत मारफते यापनी श्राज्ञा मानवामाटे तेमने कहेवरावो, पण ते, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005362
Book TitleShatrunjaya Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size20 MB
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