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अष्टमःसर्गः पांच लाख श्राणु हजारने चारसो श्राविका हती. एवी रीते प्रजुना परिवारमा चतुर्विध संघनी स्थापना थ; वली शासननी रक्षा माटे महायद तथा अजिता नामनी यक्षिणी अधिष्ठाता थ. एवी रीते प्रनु श्रढारलाख पूर्व कुमारपणामां रह्या; त्रेपन लाख पूर्व तेमणे राज्य पादयु; बार वर्ष बन्नस्थ रह्या; तथा एक लाख पूर्व दीदा पाली; एवी रीते अजित प्रजुनुं श्रायुष्य बहोतेर लाख पूर्वनुं हतुं.
हवे प्रजु अनुक्रमे विहार करता थका एक हजार मुनि साथे सम्मेतशिखरपर श्राव्या, तथा त्यां तेमणे अनशन ग्रहण कयु. पनी एक मासने अंते चैत्र सुदी पांचमने दिवसे, चंड रोहिणी नक्षत्रमा श्रावते बते, प्रनु ते मुनि सहित मोदे गया. ते वखते आसनो चलायमान थवाथी इंसादिक देवोए त्यां श्रावीने प्रजुनो निर्वाणमहोत्सव कर्यो.
हवे सगर महामुनि पण प्रजुनी पेठे जगतने प्रतिबोध देता थका घातिकोना क्षयथी केवलज्ञान पाम्या. एवी रीते ते पण प्रजुनी पेठेज बहोतेर लाख वर्षोनु थायुष्य पालीने सम्मेतशिखरपर मोदे गया. एवी रीते बीजा तीर्थंकर श्री अजितनाथ प्रजुना बोधथी तथा इंजना उपदेशथी सगर चक्रीश्वरे जरतजीनी पेठेज संघ सहित शत्रुजय पर्वतपर सातमो उकार कों, तथा तेथी धातिकोनो नाश करीने ते मोदमां गया.
एवी रीते सातमो उकार जाणवो. हवे एक दहाडो चोथा तीर्थंकर श्री अनिनंदन प्रजु देवोथी स्तुति कराता थका, तथा पोताना चरणोथी पृथ्वीने पवित्र करता थका शत्रुजय पर्वत प्रते आव्या. त्यां रायणनी तले देवोए बहु नक्तिथी प्रजु माटे समवसरण रच्युं. त्यां सिंहासनपर बेठेला, तथा त्रण उत्रोथी शोजता एवा प्रज्जु सर्वजाषामय वाणीथी कहेवा लाग्या के, श्रा शत्रुजय पर्वत अंतरंग शत्रुउँने नाश करनारो, सर्व पापोने हरनारो, तथा मुक्तिरुपी स्त्रीना क्रीडागृह सरखो शोने दे. अहीं सुवर्ण कलश सरखा, कव्याणना करनारा, तथा सुवर्ण सरखी कांतिवाला श्री युगादीश प्रजु सनातन रहेला . वली सर्व तीर्थंकरो मोदमां गया बाद, तथा केवलज्ञाननो लय थयाबाद था तीर्थज सर्वने कल्याणकारी थशे.जे प्राणी अ
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