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(२८)
श्री विपाकसूत्र
[प्राक्कथन
के उदय से ऐसा संहनन प्राप्त होता है उसे ऋषभनाराचसंहनननामकम कहते हैं।
४०-नाराच संहनननामकम-जिस संहनन में दोनों ओर मर्कटबन्ध हों किन्तु वेष्टन और कीला न हो, उसे नाराचसंहनन कहते हैं । जिस कर्म के उदय से ऐसा संहनन प्राप्त होता है, उसे नाराचसंहनननामकर्म कहते हैं ।
__ ४१-अर्धनाराचसंहनननामकर्म-जिस संहनन में एक तरफ मर्कटबन्ध हो और दूसरी तरफ कीला हो उसे अर्धनाराच संहनन कहते हैं । जिस कर्म के उदय से ऐसा संहनन प्राप्त होता है उसे अर्धनाराचसंहनननामकर्म कहते हैं।
४२-कीलिकासंहनननामकम-जिस संहनन में मर्कटबन्ध और वेष्टन न हो किन्तु कीले से हड्डियां मिली हुई हों वह कीलिकासंहनन कहलाता है । जिस कर्म के उदय से इस संहनन की प्राप्ति हो उसे कीलिकासंहनननामकर्म कहते हैं।
४३-सेवार्तकसंहनननामकम-जिस में मर्कटबन्ध, वेष्टन और कीला न हो कर यूही हड्डियां आपस में जुड़ी हुई हों वह सेवार्तकसंहनन कहलाता है। जिस कर्म से इस संहनन की प्राप्ति होती है, उसे सेवार्तकसंहनननामकम कहते हैं।
४४-समचतुरस्रसंस्थाननामकम-- पालथी मार कर बैठने से जिस शरीर के चारों कोण समान हों, अथवा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयवलक्षण शुभ हों, उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं । जिस कर्म के उदय से ऐसे संस्थान की प्राप्ति होती है, उसे समचतुरस्रसंस्थाननामकम कहते हैं।
४५-न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म-बड़ के वृक्ष को न्यग्रोध कहते हैं। उस के समान जिस शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव पूर्ण हों किन्तु नाभि से नीचे के अवयव हीन हों, उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान कहते हैं । जिस कर्म के उदय से इस की प्राप्ति होती है, उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननामकर्म कहते हैं।
४६-सादिसंस्थाननामकम-जिस शरीर में नाभि से नीचे के अवयव पूर्ण और ऊपर के अवयव हीन होते हैं, उसे सादिसंस्थान कहते हैं। जिस कर्म के उदय से इस की प्राप्ति होती है उसे सादिसंस्थाननामकर्म कहते हैं।
४७-कुब्जसंस्थाननामकर्म-जिस शरीर के साथ पैर, सिर, गरदन आदि अवयव ठीक हो किन्तु छाती, पीठ, पेट हीन हों, उसे कुजसंस्थान कहते हैं, जिसे कुबड़ा भी कहा जाता है। जिस कर्म के उदय से इस संस्थान की प्राप्ति होती है उसे कुब्जसंस्थाननामकर्म कहते हैं ।
४८-वामनसंस्थाननामकर्म-जिस शरीर में हाथ पैर आदि अवयव छोटे हों और छाती
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