Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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'गुणों से साधु को मानना चाहिए। अगर साधुत्व के गुण हैं, तो उसे वन्द्य और आदरणीय समझ कर विनय करना ही चाहिए। रोटी कैसे पकी है? यह न देख कर; यह रोटी भूख मिटाने वाली है या नहीं? यह देखा जाता है। इसी प्रकार किस साधु या साध्वी की साधना किन क्रियाकांडों से, किस वेष में, किस क्षेत्र में या किन धर्म-साधनों को लेकर चल रही है? यह देखने के बजाय उसमें साधुत्व के गुण परिपक्व हो रहे हैं या नहीं? संयम की साधना पक रही है या नहीं? वीतरागता, समता, कषाय-क्षीणता, विषयासक्ति-मन्दता अहिंसा-सत्यादि गुणों की दृढ़ता आदि की मात्रा बढ़ रही है या नहीं? यही देखो। संकीर्ण दृष्टि से और सिर्फ साम्प्रदायिकता की दृष्टि से सोचना और तदनुसार व्यवहार करना गुणीसाधु-साध्वियों के प्रति अन्याय करना है; उनके द्वारा होने वाले सद्धर्मलाभ से वंचित होना है और इस प्रकार उनकी घोर आशातना करके कर्मबन्धन करना है।
गुणी साधुओं की तरह योग्य साध्वियों की भी अगर कद्र नहीं की जाती, उनके प्रति उपेक्षाभाव रखा जाता है, उनके जीवन-विकास का कोई ध्यान नहीं रखा जाता, उनके उचित अधिकारों (व्याख्यान देने, धर्मप्रभावना करने, धर्म-प्रचार करने आदि) का हनन किया जाता है, उनका तिरस्कार किया जाता है तो ऐसा करना साध्वियों की घोर आशातना है।
श्रमण-श्रमणियों के प्रतिक्रमण में 'श्रमणसूत्र' में 'तेत्तीसाए आसायणाए' (३३ प्रकार का आशातना) से प्रतिक्रमण (दुष्कृत्य से निवृत्त होने) का पाठ आता है। वहाँ जैसे ‘साहूणं आसायणाए' (साधुओं की आशातना से प्रतिक्रमण) पाठ आता है, वैसे ही 'साहूणीणं आसायणाए' (साध्वियों की आशातना से प्रतिक्रमण) पाठ भी आता है। तब फिर क्या कारण है कि साध्वियों के प्रति होने वाले इस आशातनारूप अविनय के प्रति आज जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता?
इसी प्रकार इसी पाठ में आगे चल कर 'सावयाणं आसायणाए' (श्रावकों की आशातना से प्रतिक्रमण) तथा 'सावियाणं-आसायणाए' (श्राविकाओं की आशातना से प्रतिक्रमण) पाठ भी आता है। और यह पाठ प्रतिदिन प्रतिक्रमण के समय बोला जाता है। परन्तु आज श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा साधु-साध्वियों को कोई हितकर, युगानुरूप धर्मानुकूल, या संघकल्याणकर बात सप्रेम, सविनय भी कही जाय तो प्राय: ठुकरा दी जाती है, या उपेक्षा की जाती है। कभी-कभी तो किसी साधु या साध्वी में अमुक महाव्रतभंग का दोष हो और किसी श्रावक-श्राविका द्वारा सविनय निवेदन करने पर भी उसे उनके गुरु या गुरुणी द्वारा दबाने या २४
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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