Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
“कल्याणकार, अचल, अरूप, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, और अपुनरावृति (जहाँ जाने के बाद पुन: लौटना नहीं होता) सिद्धि गति नामक स्थान को प्राप्त ।” भगवद्गीता में भी यही बात कही है—
___“यद् गत्वा न निवर्तन्ते, तद्धाम परमं मम ।" यानी—जहाँ पहुंच कर कोई लौटते नहीं, वही परमधाम मेरा है। यहाँ से पहले या पीछे किसी भी प्रकार से कर्मक्षय करके सिद्ध या मुक्त होने के बाद, वहाँ (सिद्धिगति में) कोई फरक नहीं होता। सिद्ध होने से पूर्व की अवस्थाओं को लेकर उपचार से यहाँ की अपेक्षा ही सिद्धों के १५ प्रकार किये हैं । वहाँ सभी सिद्ध एक समान हैं । जहाँ एक सिद्ध है, वहीं अनन्त सिद्ध हैं।
सिद्ध भगवान् के मूल ८ गुण हैं—अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तचारित्र, अनन्तबलवीर्य, अव्याबाध सुख, अटल अवगाहना, अमूर्तिक, अगुरुलघु । वैसे तो प्रत्येक आत्मा के अनन्त गुण हैं। पर ये ८ गुण सिद्धों में विशेष प्रकार से होते हैं।
सिद्ध भगवान् का विनय करने के लिए तो भावना ही उपयोगी माध्यम हो सकता है। इसके अलावा स्तुति, बहुमान, पूर्ण श्रद्धा, भक्ति, गुण-गान, अनाशातना आदि कई प्रकार से विनय किया जा सकता है । और वास्तव में यहाँ भी ‘सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु' या 'आरुग्गबोहि-लाभं समाहिवरमुत्तमं दितु' आदि प्रार्थनाएं भक्ति की भाषा में हैं। इनका आशय इतना ही है कि “मैं सिद्धि (मुक्ति) के लिए प्रबल पुरुषार्थ करूं, या स्वस्थ-बोधिलाभ या उत्तम समाधि के लिए स्वयं प्रयत्न करू, उनमें कहीं अड़चन आती हो, मेरी शक्ति कम पड़ती हो, या मैं रागद्वेषादि शत्रुओं से हार खा जाऊँ, वहाँ प्रेरणाबल प्राप्त हो ।” भावना में तो असीम बल है ही। भावों की गति भी देशकाल की दूरी की परवाह नहीं करती । अत: भावों-शुद्ध एवं प्रबल संकल्पों द्वारा आत्मबल प्राप्त करने में सिद्ध भगवान् निमित्त बन सकते हैं, बशर्ते कि विनय और पुरुषार्थ पूरा हो ।
कुल-विनय एवं गण-विनय साधुओं के समुदाय को गच्छ या गण कहा जाता है, जैसे खरतर-गच्छ, तपोगच्छ आदि। और उन गणों या गच्छों के समूह को कुल कहते हैं; जैसे हमारा और आपका चान्द्रकुल है । मूल में इस गच्छ का नाम कोटिक-गच्छ था। बाद में कालान्तर में इसका नाम तपो-गच्छ प्रचलित हो गया है।
___ गण और कुल के प्रति विनय करना गणविनय और कुलविनय है। मतलब यह है कि गण और कुल के गुणीजनों के प्रति विनय करना, उनका बहुमान करना, उनका गुणगान करना,
२२
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org