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esese596PSPE विद्यानुशासन 9595905959595
अर्द्धेन्दु चन्द्राकार यंत्र को वरुण मंडल कहते हैं। किन्तु उसमें कोई ऐसा चिन्ह नहीं होता जिसमें उसका अन्य यंत्रों से भेद किया जा सके।
त्रि स्वस्तिकं त्रिकोणं यांत्तं कोणेषु वह्नि बीज युतं ज्वाल युत्त मरुणामं तन मडंल माहुराग्नेयां
॥ ३२ ॥
तीन स्वस्तिक वाले त्रिकोण कोणों में अग्रि बीज रं युक्त ज्वाला सहित अरुणज्योति वाले यंत्र को अग्निमंडल कहते हैं ।
बहु विंदु वक्रं रेवं वृत्ताकारं चतुर्थकार युतं कृष्णं मारुत बीजं वायव्यं मंडलं प्राहुः
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बहुत से बिन्दु और टेढ़ी रेखाओं वाले गोलाकार चार मारुत बीज यः सहित कृष्ण पत्र को वायुमंडल कहते हैं ।
चत्वारि मंडलानि च लवस्य वर्णेः क्रमेण युक्तानि पृथ्वी सलिल हुताशन मारुत बीजैः समेतानि
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क्षिपं रं यं बीज सहित ल व र य से पृथ्वी जल अग्नि वायु से चारो मंडल बने हैं।
विन्दु पंचक संयुक्त मुत्तमाकार मंडलं दिग विदिगात हाकार हंकारं पंच वर्णक
॥ ३५ ॥
इस प्रकार ल सहित पृथ्वी मंडल व सहित जलमंडल रसहित अग्निमंडल और य सहित वायुमंडल को बनावे | पांच विन्दु सहित उत्तम आकार वाला दिशा तथा विदिशाओं में हा बीज याला हंकार रूप पंचवर्ण आकाश मंडल होता है ।
मंडलानां यदा मध्ये नामादि न्यास उच्यते तदा मध्य स्थितं बीजं महादिक्षुनिवेशयेत
॥ ३६ ॥
जब इन मंडलों के बीच में नाम आदि का रखना बतलाया जाये तो मध्य के बीज को महादिशाओं
में रखें।
मंडल लक्षण मेतन्निरूपितं प्रथमेव सर्वेषां एतत्सं बंधतया यंत्राणां वक्ष्य माणेन
॥ ३७ ॥
पीछे मंडलों के वर्णन में लिखा गया था कि इनके यंत्रो का वर्णन आगे लिखा जावेगा अस्तु यह वर्णन यहाँ कर दिया गया।
OSPAPSPSS ९८ PSP595959595