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BASICSIRIDIODIOTSIDE विद्यानुशासन RISTOTSIDISTRISASTEROTES
कुंभकं स्तंभननाटोषु रेचकं चालनादिषु कपूरक
चांगनाकृष्टि प्रमुख च प्रयोजयेत ॥१६॥ स्तंभन आदि कर्मो में कुभंक, प्राणायाम चालन आदि में रेचक, और स्त्री आकर्षण आदि में एक प्राणायाम का प्रयोग करें।
दीपन पल्लव संपुट रोद्य ग्रंथना विदर्भनं कुर्यात्
शांति द्वेष वशीकृति वधन स्त्र्या कृष्टि स्तंभनं कुर्यात् ॥१७॥ शांति पौष्टिक में दीपन, विद्वेषण, उच्चाटन में पल्लव, वश्य में संपुट, मारण में रोध, स्त्र्याकर्षण में ग्रन्थ तथा स्तभंन में विदर्भ न की रीति से जप करे।
आदौ नाम निवेशो दीपनमंते च पल्लवो ज्ञेयः तन्मध्य गतं संपुट मयादि मध्यांत गोरोध:
॥१८॥ ग्रंथितं वर्णातरीतं द्वराक्षर मध्यस्थितो विदर्भः स्यात्
षट्कर्मकरण मेत त ज्ञात्वानुष्टानमा चरेत्मंत्री ॥१९॥ नाम को मंत्र के आदि में रखना, दीपन नाम को मंत्र के अंत में रखना, पल्लव मंत्र के बीच में रखना संपुट और आदि मध्य तथा अंत में रखना रोध कहलाता है। नाम के एक एक अक्षर के पश्चात मंत्र रखने को ग्रन्थ तथा नाम के दो दो अक्षर अक्षर के पश्चात मंत्र रखने को विदर्भन कहते हैं। यह छहों कर्मों को करने की क्रिया है मंत्री इसको जानकर ही अनुष्ठान करें। देवदत्त ह्रीं दीपनं
शांति व पौष्टिक कर्म ह्रीं देवदत पल्लव
विद्वेषण उचाटन कर्म ह्रीं देवदत्त ही संपुट
वश्य कर्म दे ह्रीं व ह्रीं दहीं दहीं त ग्रन्थन स्त्री आकर्षण कर्म ह्रीं तहीं दहीं वहींद विदर्भन स्तंभन कर्म
अमुकपदोप पदेषु मंत्रेश्वोपक्रमो न संग्राह्याः अभिधानं तद्रूप विन्यस्टोत्तत्यद स्थाने
॥१९॥ अमुक अमुक पद उपपदों में इस उपरोक्त विधि का प्रयोग न करे यह जान कर ही उस मंत्र का उस स्थान में प्रयोग करें। SSIODRISISTERIORISRAL ९५ PXSTOECISIOSDISCTRICISS