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SSIRISTRICISTORICT विद्यानुशासन ISIOISO151055815RICA
वश्य विद्वेषणोच्चाट पूर्वमध्या पराह्निके संध्यार्द्ध रात्रि राज्यंते वद्य शांतिक पौष्टिकं
॥४॥ वश्य कर्म को प्रातःकाल, विद्वेषण, मध्यकाल, उच्चाटन को अपराह्न काल, वध को संध्या काल, शांति को मध्य रात्रि और पौष्टिक कर्म को रात्रि के अंत में करे।
कृष्णाष्टम्यांमथ तद्भूत तिथौ वा कुजांशकाभ्युदटो
दुष्टग्रह शुभग्रह लग्ने प्रविशे जो कृष्णा अष्टमी अथवा उसी भूत की तिथि अथवा मंगल के अंशो के निकलने पर दुष्टग्रह के लग्न में दुष्ट कार्य को और शुभ ग्रह के लग्न में शुभ कार्य को करे।
पितृपौस्त्र वरणविधि हरि गुरुत्तरा त्रय कर त्रयादि तपः ताराः
शांतिक पौष्टिक कर्मणि सिद्धि प्रदाः कथिताः ॥६॥ शांतिक और पौष्टिक कर्म में विशेष करके कृष्ण पक्ष का पुष्य नक्षत्र और सामान्य रूप से कृष्ण पक्ष सिंह लग्न (राशि) वृहस्पति वार उत्तरा, फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र तथा वव वासव और कोलवकर्ण सिद्धि प्रद कहे हैं। -
रिक्ताष्टमी पर्व सु कृष्ण पक्षे कुजार्कि भास्वद ग्रह वासरश्च
शांतिश्च पुष्टि श्च विधिः फलाय नस्यादिति ज्योतिष विद्भिरुक्तं ॥७॥ कृष्ण पद की रिक्ता चोथ, नवमी, चतुर्दशी अथवा अष्टमी तिथि मंगल, शनि अथवा सूर्यग्रह और दिन का समय शांति और पौष्टिक कर्म के लिये विद्वानों ने कहा है।
अष्टम राशिः कुलिको वैनाशिक तारकास्थ चिरयोगः
अंगारस्य तु वारो भवत्परं क्षुद्रकम संसिद्धयै ॥८॥ क्षुद्र कर्म की सिद्धि के लिये वृश्चिक राशि अश्विणी अश्लेषा मधा ज्येष्टा मूल और रेवती यह वैनाशिक नक्षत्र विष्कुंभ सोभाग्य सुकर्मागंड ध्रुव वज़ वर्याण सिद्ध द्वितीय सिद्ध शुक्ल और वैधृति यह चिर योग तथा मंगल वार को लाभप्रद बतलाया है।
साध्य सानु गुणेषु ग्रहेषु सिद्धयति तरां
शुभं कर्म अननु गुणे श्वशुभानिक्षणेन सिद्धंयाति कर्माणि ॥९॥ शुभ कर्म को उसके अनुकूल शुभ गुणवाले ग्रहों में अशुभ कर्म को उसके अनुकूल अशुभ गुणवाले ग्रहों में सिद्ध करने में तुरंत ही सफलता मिलती है। CI501525TOISTORICISIOTA ९३ PADRISTOTRIOSISIOTECTRICTS