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से शोभित हुये । ऐसे समस्तलोकमें आनंद मंगल करने वाले श्रीमहावीरभगवानको मैं (ग्रंथकार ) अपने हृदयमें धारण करता हूं।
तत्पश्चात् ज्ञानरूपी भूषणके धारक, धर्मखपी तीर्थके स्वामी, श्रीऋषभदेव भगवानसे लेकर पार्श्वनाथ पर्यंत तीर्थकरों को भी मैं अपनी इष्टसिद्धिकेलिये इस ग्रंथकी आदिम नमस्कार करता हूं । इनसे भी भिन्न जो ज्ञानरूपी संपत्तिके धारी हैं उनको भी नमस्कार करता हूं। तथा ध्यानसे देदीप्यमान शरीर के धारी, गणोंके स्वामी, एवं उत्कृष्टस्वामी ( आदिगणधर ) श्रीवृषभसेन गुरूको भी मैं अपन हितकी प्राप्तिके लिये नमस्कार करता हूं। तत्पश्चात् मुनि अर्जिका श्रावक और श्राविका इन चारों गणोंसे सेवित, धीर, समस्तपृथ्वीतलमें श्रेष्ठ, जिनसे मिथ्यावादी लोग डरते हैं, और जो तीनों लोकके प्रकाशकरनेवाले हैं, ऐसे ( अंतिमगणधर ) श्रीगौतम स्वामीको भी मैं नमस्कार करता हूं। ___इनके पश्चात् जिस भगवती वाणीके प्रसादसे संसारमें जीव समस्त हिताहितको जानते हैं, और जो श्री केवली भगवानके मुखसे प्रकट हुई है उस वाणीको भी मैं नमस्कार करता हूं ___तत्पश्चात् नो गुरु हितकारी, श्रेष्ट बचनरूपी संपत्तिसे शोभित ज्ञानरूपी भूषणके धारक, अत्यंत तेजस्वी अहंकाररूपी हस्तीके मर्दन करनेवाले हैं, , ऐसे कमरूपी
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