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श्रेणिकचरित्र
श्रीवर्द्धमानमानंदं नौमि नानागुणाकरं । विशुद्धध्यानदीप्तार्चिहुतकर्मसमुच्चयं ॥
शुक्लध्यानरूपी देदीप्यमान अग्निसे समस्तकर्मोंके समूह को जलानेवाले, अनेकगुणोंके आकर आनंदके करनेवाले श्रीवर्द्धमान स्वामीको मैं नमस्कार करता हूं ॥ १ ॥ जिस भगवानने वाल्यअवस्थामें ही मुनियोंका संदेह दूर करनेसे श्रेष्ठ विद्वत्ताको पाकर सन्मतिनामको धारण किया। जिस भगवानने वाल्य अवस्थामें ही मायामयी सर्पके मर्दन करनेसे महाबीरनाम को प्राप्त किया,और जो वाल्य अवस्थामें ही अत्यंत बलको पाकर वीरों के वार कहलाये । जिसभगवानने मनुष्यलोकसंबंधी बड़े भारी राज्यको भी, जीर्णतृणके समान समझकर, छोड़ दिया एवं जो दीक्षा धारण कर समस्तलोकके वंदनीय हुये । तथा जो महावीर भगवान केवलज्ञान केवलदर्शनको प्रकाशकर धर्मरूपी संपत्ति
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