________________
कड़ियाँ विस्मृत अथवा लुप्त-विलुप्त हो चुकी हैं। इन तथ्यों की विस्तृत जानकारी मैंने समय-समय पर प्रकाशित अपने लेखों में दी है ।
प्रबन्ध-काव्यों की विशेषताएँ
अपभ्रंश के प्रबन्धात्मक काव्यों में सामान्यतया निम्न विशेषताएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध होती हैं
1. पौराणिक पात्रों पर युग प्रभाव, 2. प्रबन्ध-काव्यों में पौराणिकता रहने पर भी कवियों द्वारा स्वेच्छया प्रबन्धों का पुनर्गठन 3. प्रतिभा का चमत्कारी प्रदर्शन 4. पौराणिक प्रबन्धों में काव्य-तत्व का संयोजन 5. प्रबन्धावयवों का सन्तुलन 6. मर्मस्थलों का संयोजन 7. प्रबन्ध-काव्यों में उद्देश्य - दृष्टि की समता किन्तु आद्यन्त- अन्विति की दृष्टि से पात्र - चरित्रों की पृथकता 8. सिद्धान्त - प्रस्फोटन के लिए आख्यान का प्रस्तुतीकरण 9. आचार के क्षेत्र में मौलिकता का प्रवेश 10. दार्शनिक-विषयों का काव्य के परिवेश में प्रस्तुतीकरण 11. कहीं-कहीं पर कथानक को बिना ब्यौरों के क्षिप्रगति से आगे बढ़ा देने की प्रवृत्ति और 12. कहीं-कहीं गुण की अपेक्षा परिमाण का महत्त्व । इन्हीं तथ्यों के आलोक में प्रस्तुत पासणाहचरिउ का संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जा रहा है
बुध श्रीधर कृत पासणाहचरिउ
बुध श्रीधर कृत प्रस्तुत "पासणाहचरिउ (पार्श्वनाथ चरित) अद्यावधि अप्रकाशित है। इसका कथानक यद्यपि परम्परा-प्राप्त ही है, किन्तु कथावस्तु गठन, भाषा-शैली, वर्णन प्रसंग, समकालीन संस्कृति एवं इतिहास -सम्बन्धी सामग्री की दृष्टि से वह विशेष महत्त्वपूर्ण है।
इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उसमें समकालीन दिल्ली का आँखों देखा वर्णन उपलब्ध है । प्रतीत होता है कि दिल्ली- जनपद के सौभाग्य से ही उक्त पाण्डुलिपि काल-कवलित होने से बच सकी है। यद्यपि उसकी विभिन्न पाण्डुलिपियों की संख्या नगण्य अथवा अनुपलब्ध ही हैं।
मूल-प्रति परिचय
उक्त "पासणाहचरिउ" की एक प्रति आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर में सुरक्षित है, जिसमें कुल 99 पत्र हैं। उक्त भण्डार की ग्रन्थसूची के अनुसार उसके पत्रों की लम्बाई एवं चौड़ाई 10x6/2" हैं। उसके प्रत्येक पत्र में 12 पंक्तियाँ तथा प्रत्येक पंक्ति में 35-40 वर्ण हैं। इसका प्रतिलिपि - काल वि० सं. 1577 हैं । सन्दर्भित ग्रन्थ-सूची के अनुसार वह प्रति शुद्ध एवं सुलिपिबद्ध' है ।
ग्रन्थकार बुध श्रीधर
अनेक
बुध श्रीधरों की भिन्नाभिन्नता
जैन- साहित्य के इतिहास में अनेक विबुध एवं बुध-श्रीधरों के नाम एवं उनकी निम्नलिखित कृतियाँ उपलब्ध होती हैं- (1) पासणाहचरिउ (2) वड्ढमाणचरिउ (3) चंदप्पहरचरिउ (4) संतिणाहचरिउ (5) सुकुमालसामिचरिउ, ( 6 ) भविसयत्तकहा, (7) भविसयत्त - पंचमीचरिउ (8) भविष्यदत्तपंचमी कथा (9) विश्वलोचनकोश एवं ( 10 ) श्रुतावतार कथा |
1.
दे. आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर की ग्रन्थ- सूचियाँ भाग 2 |
श्री प्राच्यविद्याविद् सिद्धान्ताचार्य बाबू अगरचंद जी नाहटा (बीकानेर) ने केकड़ी (राजस्थान) निवासी श्री. पं. दीपचंदजी पाण्ड्या द्वारा सन् 1970 के दशक में उक्त पाण्डुलिपि की प्रतिलिपि कराकर अत्यन्त कृपापूर्वक मुझे भेजी थी । श्रद्धेय नाहटा जी ने मुझसे यह भी अनुरोध किया था कि मैं स्वयं इसका सम्पादन- अनुवाद एवं समीक्षा कार्य करूँ । मेरे प्रति उनके विश्वास एवं स्नेह के लिये मैं उनका सदा आभारी रहूँगा। स्मृतिशेष उन दोनों के प्रति मेरा श्रद्धापूर्वक सादर प्रणाम ।
28 :: पासणाहचरिउ