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पुद्गल का लक्षण
गाथा
सइंधयार उज्जोअ, पभा छायातवेहि अ । वण्ण-गंध-रसा-फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥
अन्वय सद्द अंधयार उज्जोअ, पभा छाया अ आतवेहि वन्न गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥
संस्कृत पदानुवाद शब्दान्धकारावुद्योतः, प्रभा छायातपैश्च । वर्णो गंधो रसः स्पर्शः, पुद्गलानां तु लक्षणम् ॥११॥
शब्दार्थ सद्द - शब्द
वन - वर्ण अंधयार - अंधकार
गंध - गंध उज्जोअ - उद्योत
रसा - रस पभा - प्रभा
फासा - स्पर्श छाया - प्रतिबिंब
पुग्गलाणं - पुद्गलों के आतवेहि - आतप तु - ही अ- और
लक्खणं - लक्षण है।
भावार्थ शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श, ये पुद्गलों के ही लक्षण है ॥११॥
विशेष विवेचन पूर्वोक्त गाथा में धर्मास्तिकाय आदि ३ द्रव्यों के लक्षण बताये गये थे।
प्रस्तुत गाथा में पुद्गल के लक्षणों का वर्णन है। प्रति समय नये परमाणु आने से पूरण धर्म वाला तथा प्रतिसमय पूर्वबद्ध-परमाणु बिखरने से गलन धर्म
श्री नवतत्त्व प्रकरण