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जब कोई ध्यान करनेवाला पूर्वधर अपने पूर्वगत श्रुताधार से अथवा पूर्वधर न हो तो यथा संभवित श्रुतज्ञान के आधार से किसी एक द्रव्य के अर्थ से दूसरे द्रव्य के अर्थ पर अथवा एक पर्याय के अर्थ से अन्य पर्याय के अर्थ पर विचार करने के लिये प्रवर्त्तमान हो या एक योग को छोडकर अन्य योग में प्रवर्त्तमान हो, उसको पृथक्त्व वितर्क
सविचार शुक्ल ध्यान कहते हैं। ९९३) एकत्व वितर्क अविचार शुक्लध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर : उपरोक्त व्याख्या के विपरीत जब कोई ध्यान करने वाला अपने में
संभवित श्रुत के आधार पर वायु रहित स्थान में स्थित निश्चल लौ वाले दीपवत् एक ही द्रव्यादि पर चिंतन करता है तथा मन आदि तीनों योगों में से किसी एक योग पर ही अटल रहता है, शब्द, अर्थ के चिन्तन एवं भिन्न-भिन्न योगों में संचार नहीं करता, तब उसका वह
ध्यान एकत्व वितर्क अविचार शुक्लध्यान कहलाता है। ९९४) सूक्ष्म क्रिया अनिवृत्ति शुक्लध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर : जब केवलज्ञानी भगवंत तेरहवें गुणस्थानक के अंत में मन-वचन का
निरोध करने के बाद काययोग को रोकते हैं, उस समय सूक्ष्म काययोगी केवली को सूक्ष्म क्रिया अनिवृत्ति शुक्ल ध्यान होता है। अर्थात् सूक्ष्म (काय) योग प्रवृत्ति रुप क्रिया योग निरोध होने पर विनष्ट होने वाली होने से प्रतिपाति है। इसलिये यह सूक्ष्म क्रिया अप्रतिपाति शुक्ल ध्यान
कहलाता है । (इसमें सूक्ष्म काययोग रुप क्रिया होती है।) . ९९५) व्युपरत क्रिया अनिवृत्ति शुक्लध्यान किसे कहते हैं । ? । उत्तर : शैलेशी अवस्था में १४ वे अयोगी गुणस्थान में केवली को श्वासोच्छ्वास
रुप सूक्ष्म काययोग क्रिया का भी विनाश होने से अक्रियपना उत्पन्न होता है, जो सदा काल रहने वाला है, इसलिये यह व्युपरत क्रिया अनिवृत्ति शुक्लध्यान कहलाता है । इस के प्रभाव से शेष सब कर्म क्षीण हो जाने से मोक्ष हो जाता है । यह स्थिति एक बार प्राप्त होने पर फिर कभी नहीं जाती।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण