Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 366
________________ उत्तर : दो - (१) द्रव्यमोक्ष, (२) भावमोक्ष ११६२) द्रव्य मोक्ष किसे कहते हैं ? उत्तर : आत्मा से कर्मपुद्गलों का विनष्ट होना द्रव्य मोक्ष है । ११६३) भावमोक्ष किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्म एवं रागद्वेष रहित आत्मा का शुद्ध उपयोग भाव मोक्ष है। ११६४) मोक्ष तत्त्व के प्रकारान्तर से कितने भेद हैं ? उत्तर : नौ अनुयोग द्वार रुप नौ भेद हैं - (१) सत्पदप्ररूपणा, (२) द्रव्यप्रमाण, (३) क्षेत्र, (४) स्पर्शना, (५) काल, (६) अंतर, (७) भाग, (८) भाव, (९) अल्पबहुत्व। ११६५) सत्पद प्ररूपणा द्वार किसे कहते हैं ? । उत्तर : कोई भी पद वाला पदार्थ सत् (विद्यमान) है या असत् है । अर्थात् उस पदार्थ का अस्तित्व जगत् में है या नहीं, उसकी विवक्षा करना, सत्पद प्ररूपणा द्वार है। ११६६) मोक्षपद सत् है या नहीं, यह कैसे जाना जाता है ? उत्तर : मोक्षपद सत् (सत्य) है क्योंकि यह शुद्ध एक पदवाला नाम है। जो एक पद वाले नाम से वाच्य वस्तु होती है, वह अवश्य विद्यमान होती है, जैसे-कुसुम । दो पद से मिलकर बने हुए एक पदवाली वस्तु होती भी है और नहीं भी होती । जैसे-उद्यान-कुसुम होता है परंतु आकाश पुष्प नहीं होता है । यह असत्पद है। ११६७) मोक्षपद की विचारणा किससे होती है ? उत्तर : मार्गणाओं से। चौदह मार्गणाओं का विवेचन ११६८) मार्गणा किसे कहते हैं ? उत्तर : मार्गणा अर्थात् किसी वस्तु को खोजने के मुद्दे । अथवा विवक्षित भाव का अन्वेषण-शोधन मार्गणा कहलाता है। ११६९) मार्गणाएँ कितनी है ? ------- श्री नवतत्त्व प्रकरण ३६३

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