Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 391
________________ उत्तर : एक निगोद का अनन्तवाँ भाग ही मोक्ष में गया है। १३४२) सूक्ष्म निगोद के जीवों को कितनी-वेदना होती है ? उत्तर : सूक्ष्म निगोद में रहे हुए जीव प्रति समय अनंत-अनंत वेदना भोगते हैं। उसे एक दृष्टान्त से इस प्रकार समझ सकते हैं कि सातवी नरक का उत्कृष्ट आयुष्य ३३ सागरोपम है। उसमें जितने समय (असंख्याता) होते हैं, उतनी ही बार कोई जीव सातवीं नरक में ३३ सागरोपम की आयुष्यवाला नारकी रुप में उत्पन्न हो । वह सब दुःख इकट्ठा करे, उससे भी अनंतगुणा दुःख और वेदना एक समय में एक निगोद के जीव को होती है। १३४३) जीवादि नवतत्त्वों को जानने का क्या फल है ? उत्तर : जीवादि नवतत्त्वों का स्वरुप समझने वाले जीव को सम्यक्त्व प्राप्त होता है। १३४४) सम्यक्त्व प्राप्त होने का क्या फल है ? उत्तर : जिन जीवों ने अंतर्मुहूर्त मात्र भी सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया है, उनका संसार में परिभ्रमण केवल अर्द्धपुद्गल परावर्तनकाल जितना ही शेष रहता है । अर्थात् अर्द्धपुद्गल परावर्तनकाल के अन्दर ही वह जीव अवश्यमेव सिद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। १३४५) पुद्गल परावर्तन काल किसे कहते हैं ? उत्तर : अनन्त उत्सर्पिणी तथा अनन्त अवसर्पिणी बीत जाने पर एक पुद्गल परावर्तन काल होता है। १३४६) नवतत्त्व जानने का सार क्या है ? उत्तर : भव्य जीव इसका स्वाध्याय करके, जिनेश्वर प्ररुपित तत्त्व पर श्रद्धान करके विशुद्ध चारित्र पालन द्वारा मोक्ष को प्राप्त करें, यही नवतत्त्व के पठन-पाठन का सार है। १३४७) मोक्ष तत्त्व जानने का क्या उद्देश्य है ? उत्तर : मोक्ष तत्त्व को जानने के बाद आत्मा विचार करे कि परमात्मा भी कभी हमारी जैसी आत्मा ही थे लेकिन अपने पुरुषार्थ से, अपने आत्मबल ३८८ श्री नवतत्त्व प्रकरण

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