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से, अपनी करूणा भावों से संसार को छोड़कर आगार से अणगार बने और बहिरात्मा से अंतरात्मा बन परमात्म पद को प्राप्त किया। परन्तु मैं अभी तक इस संसार के कीचड़ में फँसा हुआ हूँ, मैं कब अपने विभाव दशा से विमुख होकर स्वभाव दशा में आऊंगा ? कब पर को छोड़कर स्व में रमण करुंगा ? मैं भी परमात्मा की तरह स्व में रमण करते-करते परम पद को प्राप्त कर, अपने स्वरूप को अपनी मूल स्थिति को प्राप्त करूँ, अपने आभ्यंतर शत्रु काम-क्रोधादि का नाश करूँ, ऐसी विचारणा कर मोक्ष में पहुँचने की जिज्ञासा रखना, यही इस मोक्ष तत्त्व को जानने का उद्देश्य है ।
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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