Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 374
________________ १२११) कवलाहार किसे कहते हैं ? उत्तर : मुख से ग्रहण किया जाने वाला अन्न, फलादि चार प्रकार का आहार कवलाहार कहलाता है। १२१२) जीव कब आहारक और कब अनाहारक होता है? उत्तर : जीव एक शरीर को छोडकर दूसरे शरीर में जाता है, उस समय यदि दो समय लगते हैं तो एक समय अनाहारक, तीन समय लगते हैं तो दो समय अनाहारक, चार समय लगते हैं तो तीन समय अनाहारक होता है। इससे ज्यादा समय कभी नहीं लगता । आंख बंद कर खोलने में असंख्य समय व्यतीत हो जाते है, उसमें से संसारी जीव तीन समय ही अनाहारक रहता है । केवली प्रभु के वेदनीय आदि चार अघाती कर्म क्षय होने के लिये केवली समुद्घात होता है। उसमें मात्र आठ समय लगते हैं। उस दौरान तीसरे, चौथे व पांचवें, इन तीन समय में जीव अनाहारक होता है। चौदहवें गुणस्थान तथा उसके पश्चात् मोक्ष के सभी जीव अनाहारक ही होते हैं। १२१३) चौदह मार्गणाओं में से किन-किन मार्गणाओं में जीव मोक्ष पा सकते हैं? उत्तर :-१० मार्गणाओं मे ही मोक्ष है - (१) मनुष्यगति, (२) पंचेन्द्रिय जाति, (३) त्रसकाय, (४) भव्य, (५) संज्ञी, (६) यथाख्यात चारित्र, (७) क्षायिक सम्यक्त्व, (८) अनाहारक, (९) केवलज्ञान, (१०) केवलदर्शन । १२१४) द्रव्य प्रमाणद्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्ध के जीव कितने हैं, इसका संख्या संबंधी विचार करना द्रव्य प्रमाण द्वार है । सिद्ध के जीव अनन्त हैं । क्योंकि जघन्य से एक समय के अन्तर में तथा उत्कृष्ट छह मास के अन्तर में अवश्य कोई जीव मोक्ष जाता है, ऐसा नियम है । एक समय में जघन्य एक तथा उत्कृष्ट १०८ जीव भी मोक्ष में जाते हैं । इसप्रकार अनन्त काल बीत गया है, अतः उस अनन्तकाल में अनन्त जीवों की सिद्धि स्वतः सिद्ध है। १२१५) क्षेत्रद्वार किसे कहते हैं ? --- --- --------- श्री नवतत्त्व प्रकरण ३७१

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