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उत्तर : सिद्ध के जीव कितने क्षेत्र का अवमाहन करके रहते हैं, यह विचार
करना क्षेत्र द्वार है। १२१६) अनंतसिद्ध कितने क्षेत्र में रहते हैं ? उत्तर : अनंतसिद्ध लोकाकाश के असंख्यातवें भाग जितने क्षेत्र में रहते हैं । १२१७) एक सिद्ध की जघन्य अवगाहना कितनी ? उत्तर : एक सिद्ध की जघन्य अवगाहना एक हाथ और आठ अंगुल अधिक
१२१८) सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना कितनी ? उत्तर : एक कोस (दो हजार धनुष) का छठा भाग यानि ३३३ धनुष ३२ अंगुल
(१३३३ हाथ और ८ अंगुल) यह सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना होती
है। १२१९) सिद्धों की मध्यम अवगाहना कितनी? उत्तर : जघन्य अवगाहना से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट अवगाहना से कुछ कम,
सब मध्यम अवगाहना कहलाती है। १२२०) सिद्धों को शरीर नहीं होता है फिर अवगाहना कैसी? उत्तर : शरीर तो नहीं है परंतु चरम शरीर के आत्मप्रदेश का घन दो तिहाई
भाग जितना होता है । जघन्य दो हाथ तथा उत्कृष्ट ५०० धनुष की अवगाहनावाले मनुष्य मोक्षप्राप्त कर सकते हैं । इसलिये उनके दो
तिहाई भाग जितनी जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना होती है। १२२१) सिद्धयमान जीव कितनी ऊँचाईवाले सिद्ध होते हैं ? उत्तर : जघन्य सात हाथ और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की ऊँचाईवाले जीव सिद्ध
होते हैं । जघन्य अवगाहना तीर्थंकरों की ७ हाथ, सामान्य केवलियों
की दो हाथ की होती है। १२२२) सिद्धक्षेत्र कैसा है ? उत्तर : ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धशिला) पैंतालीस लाख योजन की लम्बी
चौडी और एक करोड, बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ गुण पचास योजन से कुछ अधिक परिधिवाली है। वह ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी बहुमध्य
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श्री नवतत्त्व प्रकरण