Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 377
________________ देशभाग में आठ योजन जितने क्षेत्र में आठ योजन मोटी है । इसके बाद थोडी थोडी कम होती हुई सबसे अंतिम छोरों पर मक्खी की पांख से भी पतली है। उस छोर की मोदई अंगुल के असंख्येय भाग जितनी १२२३) इतने ही क्षेत्र में सिद्ध होने का क्या कारण है ? उत्तर : मनुष्य क्षेत्र (ढाई द्वीप) ४५ लाख योजन का है। ढाई द्वीप में से कोई जगह ऐसी नहीं, जहाँ अनंत सिद्ध न हुए हो। जिस स्थान से मोक्षगामी जीव शरीर से मुक्त होते हैं, उनके बराबर सीधी लकीर में एक समय मात्र में जीव उपर लोकाग्र में पहुँचकर सदाकाल के लिये स्थिर हो जाते १२२४) इतने छोटे क्षेत्र में अनंत सिद्ध कैसे समा जाते हैं ? उत्तर : जहाँ एक सिद्ध हो, वहाँ अनंत सिद्ध रह सकते हैं क्योंकि आत्मा अरुपी होने के कारण बाधा नहीं आती । जैसे एक कमरे में एक दीपक का प्रकाश भी समा सकता है और सौ दीपक का प्रकाश भी समा सकता है। हजार-लाख दीपक के प्रकाश को समाने में भी जैसे बाधा नहीं आती । ठीक उसी प्रकार आत्मा अरुपी एवं ज्योतिर्मय होने से एक ही स्थान में अनंत सिद्ध रह सकते हैं। १२२५) किस आयुष्य वाला जीव सिद्ध होता है ? उत्तर : जघन्य आठ वर्ष तथा उत्कृष्ट कोटि पूर्व के आयुष्य में जीव सिद्धत्व को उपलब्ध हो सकता है। इससे कम-ज्यादा आयुष्य वाले जीव सिद्ध नहीं हो सकते। १२२६) स्पर्शना द्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्ध के जीव कितने आकाश प्रदेश को तथा सिद्ध को स्पर्श करते __ हैं, इसकी मीमांसा करना स्पर्शना द्वार है। १२२७) सिद्ध जीव की स्पर्शना कितनी ? उत्तर : सिद्ध की जितनी अवगाहना है, उससे स्पर्शना अधिक है क्योंकि जितने आत्मप्रदेश है, अवगाहना तो उतनी ही रहेगी परन्तु अवगाहना के चारों -------------- ३७४ श्री नवतत्त्व प्रकरण

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