Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 378
________________ तरफ चारों दिशाओं में तथा उपर-नीचे छह आकाश प्रदेश है तथा जहाँ स्वयं स्थित है, उस अवगाहना का एक प्रदेश, इस प्रकार कुल सात आकाश प्रदेशों की स्पर्शना सिद्ध जीव को होती है । १२२८) कालद्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्धत्व कितने काल तक रहता है, इसका विचार करना, काल द्वार है । एक सिद्ध जीव की अपेक्षा से सादि अनन्तकाल तक तथा अनन्त सिद्ध जीवों की अपेक्षा से अनादि अनंतकाल तक की स्थिति है । १२२९) अंतरद्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्ध में अंतर है या नहीं ? इस संबंधी विचारणा करना अन्तरद्वार है । १२३०) सिद्धों में परस्पर क्या अंतर है 2 उत्तर : संसार में प्रतिपात अर्थात् पुनरागमन का अभाव होने से तथा केवलज्ञानकेवल दर्शन एक समान होने से सिद्धों में परस्पर कोई अंतर नहीं है । १२३१) भागद्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : सिद्ध जीव संसारी जीवों से कितने वें भाग में है, ऐसा विचार करना भागद्वार है । १२३२) सिद्ध जीव संसारी जीवों की अपेक्षा कितने हैं ? उत्तर : सिद्ध के जीव समस्त संसारी जीवों के अनन्तवें भाग जितने ही हैं । १२३३) अनंतसिद्ध के जीव संसारी जीवों के अनन्तवें भाग जितने ही क्यों है ? उत्तर : जगत में असंख्याता निगोद के गोले है। एक-एक गोले में असंख्याता निगोद है। एक-एक निगोद में अनंत अनंत जीव होते है । उस निगोद का अनंतवाँ भाग ही मोक्ष में गया है, अतः सिद्ध के जीव अनंतवें भाग जितने कहे गये हैं 1 १२३४) भाव द्वार किसे कहते हैं ? उत्तर : उपशम, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक तथा पारिणामिक, इन पाँच भावों में से सिद्ध में कौनसा भाव है, यह विचारणा करना भाव द्वार है 1 १२३५) उपशम (औपशमिक) भाव किसे कहते हैं ? श्री नवतत्त्व प्रकरण ३७५

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