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परिणाम होता है, उसे मिश्र सम्यक्त्व कहते हैं । इस सम्यक्त्व से जीव को सुदेव, सुगुरु तथा सुधर्म पर न श्रद्धा होती है, न अश्रद्धा होती
है।
१२०४) सास्वादन सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : औपशमिक सम्यक्त्व से पतित होता हुआ जीव अनन्तानुबंधी कषाय
के उदय से मिथ्यात्व भाव को प्राप्त करने से पूर्व जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट छह आवलिका पर्यंत सम्यक्त्व का कुछ आस्वाद होने से सास्वादन सम्यक्त्वी कहलाता है । उस जीव के स्वरुप विशेष को सास्वादन सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व भाव को
प्राप्त करनेवाले जीव को ही यह सम्यक्त्व होता है। १२०५) मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उत्तर : मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के उदय से जीव में जो मिथ्या भाव प्रकट होता
है, उसे मिथ्यात्व कहते हैं । इससे जीव को कुदेव-कुगुरु तथा कुधर्म
पर श्रद्धा होती है। १२०६) आहारमार्गणा के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) आहारक तथा (२) अनाहारक १२०७) आहारक व अनाहारक किसे कहते हैं ? उत्तर : जो जीव आहार ग्रहण करे, वह आहारक कहलाता है। जो जीव आहार
रहित है, वह अनाहारक कहलाता है। १२०८) आहार के कितने भेद हैं ? उत्तर : तीन - (१) ओज आहार, (२) लोम आहार, (३) कवलाहार । १२०९) ओज आहार किसे कहते हैं ? उत्तर : उत्पत्ति क्षेत्र में पहुँचकर अपर्याप्त अवस्था में तैजस तथा कार्मण शरीर
द्वारा ग्रहण किया जानेवाला आहार ओज आहार कहलाता है। १२१०) लोमाहार किसे कहते हैं ? उत्तर : शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने पर त्वचा तथा रोम से ग्रहण किया जानेवाला
आहार लोमाहार है।
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श्री नवतत्त्व प्रकरण