Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 364
________________ गृह्यमाण-वर्त्तमान में ग्रहण किये जाने वाले पुद्गल आपस में संयुक्त हो, वह औदारिक बंधन नाम कर्म है । ११४९) वैक्रिय बंधन नाम कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कर्म पूर्व में बंधे हुए वैकिय पुद्गलों के साथ नवीन बध्यमान वैक्रिय पुद्गलों को परस्पर संयुक्त करता है, उसे वैक्रिय बंधन नामकर्म कहते हैं । १९५०) आहारक बंधन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत आहारक शरीर के पुद्गलों के साथ गृह्यमाण आहारक शरीर पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह आहारक बन्धन नामकर्म है । ११५१) तैजस बन्धन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत तैजस शरीर के पुद्गलों के साथ गृह्यमाण तैजस शरीर के पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह तैजस बन्धन नामकर्म है । ११५२) कार्मण बन्धन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कार्मण शरीर के पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह कार्मण बन्धन नामकर्म है । ११५३) संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कर्म औदारिकादि शरीर के पुद्गलों को पिंडीभूत या संघातरुप करता है, उसे संघातन नामकर्म कहते हैं । औदारिकादि पांच शरीरों के भेद की अपेक्षा से इसके भी पाँच भेद हैं । ११५४) औदारिक संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीर के रुप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सान्निध्य हो, वह औदारिक संघातन नामकर्म कहलाता है । ११५५) वैक्रिय संघातन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर रुप में परिणत पुद्गल परस्पर पिंडीभूत हो, वह वैक्रिय संघातन नामकर्म है । श्री नवतत्त्व प्रकरण ३६१

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