Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 368
________________ ११७४) श्रुतज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : शास्त्रों के पठन-पाठन द्वारा जो ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं । ११७५) अवधिज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : इन्द्रियों तथा मन की सहायता के बिना केवल आत्मा से रूपी द्रव्यों का ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है । ११७६) मनःपर्यवज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस ज्ञान के द्वारा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जाना जाय, उसे मनः पर्यव ज्ञान कहते हैं । ११७७) केवलज्ञान किसे कहते हैं ? । उत्तर : जो ज्ञान किसी की सहायता के बिना सम्पूर्ण ज्ञेय पदार्थों को विषय करता है अर्थात् इन्द्रियादि की सहायता के बिना मूर्त-अमूर्त सभी ज्ञेय पदार्थों को साक्षात् प्रत्यक्ष करने की शक्ति रखनेवाला ज्ञान केवलज्ञान कहलाता है। ११७८) मति अज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : मतिज्ञान का विरोधी अर्थात् मिथ्यात्वी होने को होने वाला ज्ञान मति अज्ञान कहलाता है। ११७९) श्रुतअज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : मिथ्यात्वी को शास्त्रों के पठन-पाठन से तत्त्व के विपरीत जो ज्ञान होता है, उसे श्रुत अज्ञान कहते हैं। १९८०) विभंग ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि जीव के अवधिज्ञान को विभंगज्ञान कहते हैं । ११८१) चक्षुदर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर : चक्षु द्वारा जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे चक्षुदर्शन कहते हैं। १९८२) अचक्षुदर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर : अचक्षु अर्थात् आँख के बिना अन्य चार इन्द्रियों से जो सामान्य ज्ञान होता है, उसे अचक्षुदर्शन कहते हैं। ११८३) अवधिदर्शन किसे कहते हैं ? -------------- श्री नवतत्त्व प्रकरण ३६५

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