Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

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Page 355
________________ ११०१) अशाता वेदनीय कर्म बंध के कारण क्या है ? उत्तर : (१) दुःख - प्राणीयों को दुःख देने से । (२) शोक - शोक करने या कराने से । (३) ताप - संताप उपजाने से। (४) आक्रंदन - आक्रंदन करने से । (५) वध - प्राणों का घात करने से । (६) परिदेवन - करुण रुदन करने या कराने से । ११०२) वेदनीय कर्मक्षय होने पर आत्मा में कौनसा गुण प्रकट होता है ? उत्तर : अव्याबाध सुख। ११०३) मोहनीय कर्म को किसकी उपमा दी गयी है ? उत्तर : मोहनीय कर्म को शराब (मद्य) की उपमा दी गयी है । जिस प्रकार शराबी व्यक्ति को सुध-बुध नहीं रहती, विवेक तथा बुद्धि नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है, ठीक उसी प्रकार मोह में अंधा जीव जिन धर्म पर श्रद्धा नहीं कर पाता तथा विषय-भोगों में लिप्त रहता है। ११०४) मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो - (१) दर्शन मोहनीय, (२) चारित्र मोहनीय । ११०५) दर्शन मोहनीय कर्म बन्ध के हेतु कौन कौन से है ? उत्तर : केवली, श्रुत, संघ, धर्म एवं देव, इन पांचो का अवर्णवाद करना, दर्शन मोहनीय कर्मबन्ध का हेतु है। ११०६) चारित्र मोहनीय कर्मबंध के क्या क्या कारण है ? उत्तर : (१) तीव्र क्रोध, (२) तीव्र मान, (३) तीव्र माया, (४) तीव्र लोभ । ११०७) मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरोपम तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त । ११०८) मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट तथा जघन्य अबाधाकाल कितना ? उत्तर : उत्कृष्ट ७ हजार वर्ष तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त । ११०९) मोहनीय कर्म का क्षय होने पर कौन सा गुण आत्मा में प्रकट होता है ? उत्तर : अनंत चारित्र । - ३५२ श्री नवतत्त्व प्रकरण

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