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१११०) आयुष्य कर्म किसके समान है ?
उत्तर : आयुष्य कर्म बेडी के समान है। जिस प्रकार बेडी से बंधा व्यक्ति उसे
तोडे बिना मुक्त नहीं हो सकता, उसी प्रकार आयुष्य कर्म को भोगे बिना जीव एक भव से दूसरे भव में नहीं जा सकता ।
११११) आयुष्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर : चार - (१) नरकायुष्य, (२) तिर्यञ्चायुष्य, (३) मनुष्यायुष्य, (४) देवायुष्य |
१११२) नरक आयुष्य का बंध किन कारणों से होता है ?
उत्तर : (१) महा-आरंभ करने से, (२) महा - परिग्रह रखने से, (३) पंचेन्द्रिय प्राणी का वध करने से, (४) मांसाहार, अनंतकाय भक्षण करने से । १९१३) तिर्यंच आयुष्य का बंध किन कारणों से होता है ?
उत्तर : चार कारणों से - (१) माया करने से, (२) मायायुक्त झूठ बोलने से, (३) आर्त्तध्यान करने से, (४) कूट (खोटा) मापतोल करने से ।
१११४) मनुष्य आयुष्य का बंध कैसे होता है ?
उत्तर : (१) सरल - प्रकृति, (२) अल्पारंभ, (३) अल्प परिग्रह, (४) कषायों की मंदता ।
१९१५) देव आयुष्य बंध के हेतु क्या है ?
उत्तर : (१) सरागसंयम - रागयुक्त संयम का पालन ।
(२) संयमासंयम श्रावकधर्म का पालन ।
(३) अकाम निर्जरा - मोक्ष की इच्छा के बिना की जाने वाली तपश्चर्या ।
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(४) बालतप मिथ्यात्वी या अज्ञानी की तपस्या ।
१११६) आयुष्य कर्म का क्षय होने पर आत्मा में कौन सा गुण प्रकट होता है ? उत्तर : अक्षय स्थिति ।
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१११७) देव आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट ३३ सागरोपम तथा जघन्य दस हजार वर्ष । १११८) मनुष्य आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट तीन पल्योपम तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त (क्षुल्लकभव) ।
श्री नवतत्त्व प्रकरण
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