Book Title: Navtattva Prakaran
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Ratanmalashree Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ १११९) तिर्यंच आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट ३ पल्योपम तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त्त (क्षुल्लकभव ) । १९२०) नरक आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट ३३ सागरोपम तथा जघन्य दस हजार वर्ष । ११२१) आयुष्य कर्म का उत्कृष्ट एवं जघन्य अबाधाकाल कितना ? उत्तर : उत्कृष्ट - अंतर्मुहूर्त न्यून पूर्वकरोड का तीसरा भाग तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त्त । ११२२) नाम कर्म का कैसा स्वभाव है ? उत्तर : नाम कर्म का स्वभाव चित्रकार के समान है । चित्रकार नये-नये चित्रों का निर्माण करता है, वैसे ही नामकर्म के उदय से तरह तरह के शरीर, नाना प्रकार के रुप, विभिन्न प्रकार की आकृतियों का निर्माण होता है । ११२३) शुभ नामकर्म बंध के हेतु क्या है ? उत्तर : चार - (१) कायऋजुता - दूसरों को ठगनेवाली शारीरिक चेष्टा न करना । (२) भावऋजुता - दूसरों को ठगने वाली मानसिक चेष्टा न करना । (३) भाषाऋजुता - दूसरों को ठगने वाली वचनचेष्टा न करना । (४) अविसंवादन योग - कथनी व करनी में विषमता न रखना । ११२४) अशुभ नाम कर्मबंध के हेतु क्या है ? उत्तर : (१) मन की वक्रता, (२) वचन की वक्रता, (३) काया की वक्रता, (४) विसंवाद । ११२५) नाम कर्म की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट २० कोडाकोडी सागरोपम तथा जघन्य ८ मुहूर्त्त । ११२६) नामकर्म का उत्कृष्ट एवं जघन्य अबाधाकाल कितना ? उत्तर : उत्कृष्ट दो हजार वर्ष, जघन्य एक अंतर्मुहूर्त्त | ११२७) नामकर्म का क्षय होने पर आत्मा में कौन सा गुण प्रकट होता है ? उत्तर : अरूपीत्व । १९२८) गोत्र कर्म का स्वभाव किसके समान है ? ३५४ श्री नवतत्त्व प्रकरण

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400